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योग के साधन : आचार
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करना व्युत्सगं तप है । इसके भी दो भेद हैं- (क) बाह्य और (ख) आभ्यंतर । धन, धान्य, मकान आदि बाह्य वस्तुओं की ममता का त्याग करना बाह्योपधि व्युत्सर्ग है । शरीर की ममता का त्याग करना एवं काषायिक विकारों की तन्मयता का त्याग करना आभ्यंत रोपधि व्युत्सर्ग है ।
६. ध्यान - चित्त की चंचल वृत्तियों का परित्याग करके एक विषय में अन्त:करण की वृत्ति को स्थापित करना ध्यान- तप है । इस तप के बहुत-से भेद-प्रभेद हैं, जिनके संबंध में आगे विचार किया जायेगा ।
इस संदर्भ में ज्ञातव्य है कि तप के भी बहुत भेद-प्रभेद हैं, जिनका उल्लेख करना यहाँ अभीष्ट नहीं है ।"
इस तरह वैदिक, बौद्ध एवं जैन तीनों ही परम्पराओं में तप का
१. आत्माऽऽत्मीय संकल्पत्यागो व्युत्सर्गः । - सर्वार्थसिद्धि, पृ० ४३९ २. बाह्याभ्यन्तरोपध्योः । - तत्त्वार्थसूत्र, ९।२६
३. चित्तविक्षेपत्यागो ध्यानम् । सर्वार्थसिद्धि, पृ० ४३९
४. योगबिंदु में हरिभद्र ने चार प्रकार के तप का उल्लेख किया है— ( क ) चांद्रायण, कृच्छ्र, मृत्युघ्न और पापसूदन । - योगबिंदु, १३१
( ख ) तपोरत्नमहोदधि में तो तप के बहुत प्रकार गिनाये हैं जो कि देखने योग्य हैं ।
( ग ) स्थानांगसूत्र में - ( १ ) उग्रतप, ( २ ) घोरतप, ( ३ ) रसपरित्याग तथा ( ४ ) जितेन्द्रिय प्रति संलीनता, इस तरह चार तप कहे गये हैं । - स्थानांग, ३०८
(घ) भगवतीसूत्र श० २५, उद्दे० ७,
( च ) प्रकीर्णक तप के अनेक भेद हैं, यथा - चन्द्रप्रतिभ तप के दो भेद हैं- यवमध्य और वज्रमध्य । आवली के तीन भेद हैं- कनकावली, रत्नावली और मुक्तावली । सिंह-विक्रीडित के दो भेद हैंलघु और महान । प्रतिमा के चार भेद हैं- भद्रोत्तर, आचाम्ल, वर्धमान और सर्वतोभद्र । भिक्षु प्रतिमा के बारह भेद हैं- मासिक से लेकर सप्तमासिकी तक सात भेद, सप्तरात्रिकी के तीन भेद, अहोरात्रकी और एक रात्रिकी ।
( देखिए - सभाष्य स्वार्थाधिगमसूत्रम्, पृ० ३९१ )
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