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________________ १०८ जैन योग का आलोचनात्मक अध्ययन १०. अनुमतित्यागप्रतिमा--इस प्रतिमा का धारी अब इतना मोहयुक्त हो जाता है कि कृषि आदि आरंभ, धन-धान्यादि बाह्य पदार्थ, विवाहादि लौकिक कार्यों में मनवचनकाय से अनुमति नहीं देता है।' ११. उद्दिष्टत्यागप्रतिमा-यह अन्तिम और ग्यारहवीं प्रतिमा है । इस प्रतिमा का धारी श्रावक घर को त्यागकर मुनिजनों के निकट चला जाता है और गुरु के निकट व्रतों को ग्रहण करके छोटी चादर मात्र रखकर भैक्ष्यभोजन करता है और तपस्या आदि में लग जाता है। इस प्रतिमा में कोई वस्त्र-खण्ड भी रखते हैं, कोई मात्र कोपीनधारी होते हैं।' इस प्रकार इन प्रतिमाओं के द्वारा श्रावक क्रमशः आत्मविकास के सोपानों पर चढ़ता है और ग्यारहवीं प्रतिमा पर पहुँचकर वह उत्कृष्ट श्रावक अर्थात् श्रमणवत् बन जाता है। प्रतिमाओं के द्वारा जहाँ व्रतों के पालन में एकनिष्ठता, श्रद्धा, आत्मशुद्धि, वैराग्य आदि गुणों का आविर्भाव होता है, वहाँ कलुषता, क्षुद्रता आदि कषायों का स्वतः परिशमन हो जाता है। योगारंभ में इष्ट तथा अनिष्ट वस्तु का त्याग तथा भोग की मात्रा पर ध्यान दिया जाता है। जैसे-जैसे आत्मशुद्धि में वृद्धि होती है, वैसेवैसे सांसारिक मोहबन्ध की आशा छूटतो जातो हैं । श्रावक के छह आवश्यक श्रमण के दैनिक आवश्यकों की भांति श्रावक के दैनिक छह आवश्यकों का भी विधान है। देवपूजा, गुरुसेवा, स्वाध्याय, संयम, तप एवं दान ये श्रावक के षट्कर्म हैं, जो प्रतिदिन करणीय हैं। इनके करने से १. नवनिष्ठापरः सोऽनुमतिव्युपरतः विधा। यो नानुमोदते ग्रन्थमारम्भं कर्म चैहिकम् ।।-सागारधर्मामृत, ७।३० २. गुहतो मुनिवनमित्वा गुरूपकण्ठे व्रतानि परिगृह्य ।। भैक्ष्याशनस्तपस्यन्नुत्कृष्टश्चलखण्डधरः ॥ -समीचीन धर्मशास्त्र, ७।१४७ ३. एयारसेसु. पढम वि जदो णिसिभोयणं कुणंतस्स । ठाणं ण ठाइ तम्हा णिसिभुत्तिं परिहरे णिअमा। -वसुनन्दिश्रावकाचार, ३१४ ४. देवसेवागुरूपास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तपः। दानं चेति गृहस्थानां षट्कर्माणि दिने दिने । -उपासकाध्ययन, ४६९११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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