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योग के साधन : आचार
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चारों प्रकार के आहार का त्याग करता है ।" इस प्रतिमा का धारक मन, वचन, काय एवं कृत-कारित अनुमोदना से दिवामैथुन का त्याग करता है | श्वेताम्बर परम्परानुसार इस प्रतिमा को नियमप्रतिमा कहा गया है और रात्रि भोजन त्याग, दिवामैथुन आदि क्रिया को वर्जित माना गया है । "
७. ब्रह्मचर्यतिमा- इस सप्तम प्रतिमा में पूर्वोक्त छह प्रतिमाओं का निरतिचार पालन करते हुए मन को वश में करनेवाला श्रावक मन वचन काय से मानवी, दैवी, तिर्यंची और उनकी प्रतिरूप समस्त स्त्रियों के सेवन की अभिलाषा नहीं करता । "
८. आरम्भत्यागप्रतिमा - इस प्रतिमा का धारक श्रावक आरम्भसभारंभ का त्याग कर देता है । वह मन, वचन, एवं काय से कृषि, सेवा, व्यापार विषयक आरम्भ न तो स्वयं करता है. न दूसरों को करने के लिए कहता है ।"
९. परिग्रहत्यागप्रतिमा - नवम प्रतिमाधारी श्रावक पूर्ण परिग्रह का त्यागी होता है । वह शरीर ढँकने के लिए एक-दो वस्त्र रखकर शेष सभी प्रकार के परिग्रहों का त्याग कर देता है तथा मूर्च्छारहित होकर रहता है ।"
१. अन्नं पानं खाद्यं लेा नाश्नाति यो विभावर्याम् । स च रात्रिभुक्तिविरतः सत्वेष्वनुकम्पमानमनाः ॥ - रत्नकरण्ड श्रावकाचार, ७।१४२
२. मणवयणकाय कयकारियाणुमोएहि मेहुणं णवधा । दिवसम्मि जो विवज्जइ गुणम्मि सौ सावओ छट्ठो ॥
३. दशाश्रुतस्कन्ध, ५०६
४. तत्तादृक्संयमाभ्यासवशीकृतमनास्त्रिधा ।
- वसुनन्दिश्रावकाचार, २९६
यो जात्वशेषा नो योषा, भजति ब्रह्मचार्यसौ ॥ - सागारधर्मामृत, ७ १६ ५. निरूढ सप्तनिष्ठोऽङ्गिघातांगस्वात् करोति न ।
न कारयति
कृष्णादीनारम्भ विरतस्त्रिधा ॥ - वही, ७।२१;
तथा स्वामीकार्तिकेयानुप्रेक्षा, ३८५; समीचीन धर्मशास्त्र, ७११४४६. मोत्तूणवत्थमेत्तं परिग्गहं जो विवज्जए सेसं । तत्थ वि मुच्छण्ण करेइ जाण सो सावओ णवमो ॥
- वसुनन्दिश्रावकाचार, २९९
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