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जैन योग का आलोचनात्मक अध्ययन २. व्रतप्रतिमा-इस द्वितीय प्रतिमा का धारक श्रावक अणुव्रतों, गुणवतों एवं शिक्षाव्रतों को सम्यक्रूप में धारण करता है और उनका विधिवत् पालन करता है।
.३. सामायिकप्रतिमा-इस ततीय प्रतिमा में श्रावक मन, वचन एवं काय से तीनों संध्याओं में सामायिक करता है। इस प्रतिमा में सामायिक, देशावकाशिक व्रतों की आराधना होती है, लेकिन अष्टमीचतुर्दशी आदि पर्व-दिनों में प्रोषधोपवास का पालन नहीं होता।
४. प्रोषधोपवासप्रतिमा-इस चतुर्थ प्रतिमा में श्रावक महीने के चारों पर्वो पर अर्थात् प्रत्येक चतुर्दशी व अष्टमी पर शक्ति के अनुसार शुद्ध भावना से प्रोषधनियमों का पालन करता है।
५. सचित्तत्यागप्रतिमा-पंचम प्रतिमाधारी श्रावक सचित्त अर्थात् हरित वनस्पति का सेवन नहीं करता, परन्तु आरंभी हिंसा का त्याग नहीं कर पाता है। कार्तिकेयानुप्रेक्षा के अनुसार श्रावक जिस वस्तु को ग्रहण नहीं करे वह दूसरों को भी ग्रहण करने के लिए न दे, क्योंकि दोनों क्रियाओं में कोई अन्तर नहीं है।
६. रात्रिभुक्तत्यागप्रतिमा-छठी प्रतिमाधारी श्रावक रात्रि में
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१. पंचैवणुव्वयाई गुणव्वयाइं हवन्ति पुणतिण्णि ।
सिक्खावयाणि चत्तारि जाण विदियाम्मि ठाणामि ॥-वही, २०७ २. चतुरावत-त्रितयश्चतुःप्रणामः स्थितो यथाजातः । सामायिको द्विनिषद्यस्त्रियोगशुद्धस्त्रिसंध्यमभिवन्दी ।
-रत्नकरण्डश्रावकाचार, १३९ ३. दशाश्रुतस्कन्ध, ६।३ ४. पर्वदिनेष चतुर्वपि मासे मासे स्वशक्तिमनिगुह्य । प्रोषध-नियम-विधायी प्रणधिपरः प्रोषधानशनः ॥
-रत्नकरण्डश्रावकाचार,७४१४० ५. जाव राओ वरायं वा बंभयारी सचित्ताहारे से परिणाए भवति ।
आरंभे से अपरिणाए भवति ।-दशाश्रुतस्कन्ध, ६७ ६. स्वामिकात्तिकेयानुप्रेक्षा, ३८०
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