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________________ योग के साधन ! आचार सामायिक के प्रति अनादर भाव एवं (५) सामायिक ग्रहण करने के समय का ज्ञान नहीं होना। २. प्रोषषोपवास--कषायों को त्यागकर प्रत्येक चतुर्दशी एवं अष्टमी के दिन उपवास करके तप ब्रह्मचर्यादि धारण करना प्रोषधोपवास है।' इस व्रत के पांच अतिचार हैं:-(१) बिना देखे भूमि पर मल-मूत्रादि करना; (२) पाट, चौकी आदि को बिना देखे उठाना-रखना, (३) बिना देखे बिस्तर, आसन लगाना, (४) प्रोषधव्रत के प्रति आदर न होना और (५) प्रोषध करके भूल जाना। ३. देशावकाशिक-गमनागमन की मर्यादित निश्चित दिशा को दिन एवं रात्रि में यथोचित और संक्षिप्त करना देशावकाशिकवत है।' इस व्रत के भी पाँच अतिचार हैं--(१) मर्यादित क्षेत्र के बाहर किसी व्यक्ति को काम से भेजना, (२) क्षेत्र के बाहर की वस्तुओं को मंगवा लेना, (३) क्षेत्र के बाहर ध्यान आकर्षित करने के लिए पत्थर फेंकना, (४) क्षेत्र के बाहर के व्यक्ति को आवाज देकर बुलाना और (५) किसी व्यक्ति को आ जाने के लिए बाहरी क्षेत्र में स्थित आदमी को अपना चेहरा दिखाना। ४. अतिथिसंविभाग-त्यागियों, मुनियों आदि को खानपान, रहनसहन आदि वस्तुएँ देकर स्वयं खानपान करना अतिथिसंविभागवत है।" इस व्रत के भी पाँच अतिचार हैं -(१) सचित्त पदार्थों से आहार ढंकना; १. चतुष्पां चतुर्थादि, कुव्यापारनिषेधनम् । ब्रह्मचर्य-क्रिया-स्नानादित्यागः पोषधव्रतम् ॥-वही, ३।८५ २. वही, ३१११७ ३. दिग्व्रते परिमाणं यत्तस्य संक्षेपणं पुनः । दिनेरात्री च देशावकाशिक-व्रतमुच्यते ॥ -वही, ३१८४ ४. प्रेष्यप्रयोगानयने पुद्गलक्षेपणं तथा । शब्दरूपाऽनुपाती च व्रते देशावकाशिके ।। -वही, ३।११७ ५. दानं चतुर्विधाहारपात्राच्छादनसमानाम् । अतिथिभ्योऽतिथिसंविभागवतमुदीरितम् ।। -वही, ३८७ ६. सच्चित्ते क्षेपणं तेन, पिधानं काललंघनम् । मत्सरोऽन्यापदेशश्च , तुर्यशिक्षाव्रते स्मृताः॥-वही, ३।११८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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