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________________ १०२ ___जैन योग का आलोचनात्मक अध्ययन शिक्षाव्रत के भेदों में मतभेद है । चारित्रपाहुड़', पद्मचरित', भाव संग्रह',हरिवंशपुराण", आदिपुराण आदि के अनुसार इस व्रत के क्रमशः सामायिक, प्रोषधीपवास, अतिथिसंविभाग और संलेखना चार प्रकार हैं और रत्नकरण्डश्रावकाचार, स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा", सागारधर्मामृत आदि के अनुसार देशावकाशिक, सामायिक, प्रोषधोपवास एवं अतिथिसंविभाग ये चार प्रकार हैं। वसुनन्दिश्रावकाचार के अनुसार इस व्रत के चार भेद क्रमशः भोगविरति, परिभोग-विरति, अतिथिसंविभाग तथा संलेखना का उल्लेख है । शीलव्रत के निरूपण के क्रम में तत्त्वार्थसूत्र, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, उपासकाध्ययन, उपासकदशांग, चारित्र-सार, योगशास्त्र आदि के अनुसार इस व्रत के चार भेद इस प्रकार हैं--(१) सामायिक, (२) प्रोषधोपवास, (३) देशावकाशिक तथा (४) अतिथिसंविभाग। १. सामायिक-इंद्रियों को स्थिर करके रागद्वेषरूपी परिणामों को छोड़कर, समताभाव धारण करके आत्मलीन हो जाना सामायिक शिक्षाव्रत है। इस व्रत के पाँच अतिचार हैं -(१) मन की सदोष प्रवृत्ति, (२) वचन की सदोष प्रवृत्ति, (३) काय की सदोष प्रवृत्ति, (४) १. चारित्रपाहुड, २५ २. पद्मचरित, १४।१९९ ३. प्राभृतसंग्रह, पृ. ६० ४. हरिवंशपुराण, १८।४७ ५. आदिपुराण, १०६६ ६. रत्नकरण्डश्रावकाचार, ४१ ७. स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा, ३५२, ३५५, ३५८, ३६७ ८. सागारधर्मामृत, ५।२४ । ९. वसुनन्दिश्रावकाचार, २१३ १०. रागद्वेषत्यागान्निखिलद्रव्येषु साम्यमवलम्ब्य । तत्त्वोपलब्धिमूलं बहुशः सामायिकं कार्यम् ॥ -पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, १४८ ११. कायवाङ्मनसा दुष्ट-प्रणिधानमनादरः । स्मृत्यनुपस्थापनंच स्मृताः सामायिक व्रत ।। -योगशास्त्र, ३।११६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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