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________________ ९६ जैन योग का आलोचनात्मक अध्ययन आदि की मर्यादा का उल्लंघन, (३) धनधान्य- प्रमाणातिक्रम अर्थात् चतुष्पद आदि जानवरों एवं अनाज की मर्यादा का अतिक्रमण, ( ४ ) दासीदास प्रमाणातिक्रम - नौकर चाकरों आदि कर्मचारियों की संस्था मर्यादा का अतिक्रमण, (५) कुप्यप्रमाणातिक्रम अर्थात् बर्तनों एवं वस्त्रों के प्रमाण का अतिक्रमण | रात्रिभोजनविरमण व्रत जैनधर्म मूलत: अहिंसाप्रधान है, इसलिए श्रमण के लिए रात्रिभोजन के त्याग का विधान है । यहाँ तक कि इसे छठा व्रत कहा गया है । रात्रिभोजन में बहुत से जीवों की हिंसा होती है ।" स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा एवं रत्नकरण्ड श्रावकाचार के अनुसार रात्रिभुक्तिविरत श्रमण वे ही हो सकते हैं जिन्होंने रात्रि में चारों प्रकारों के भोजन का त्याग कर दिया है । योगशास्त्र के अनुसार भी रात्रि में किसी प्रकार का भोजन करना विहित नहीं है । सावयवधम्म दोहा " के अनुसार श्रावकों को रात्रि में केवल औषध, पानी एवं पान खाने की छूट है। भोजन तो रात में निषिद्ध ही है । उल्लेखनीय है कि चारित्रसार', उपासकाध्ययन, वसुनन्दि श्रावकाचार, " अमितगति श्रावकाचार', सागारधर्मामृत १० के अनुसार रात्रि में स्त्री-भोग करने एवं दिन में ब्रह्मचर्य का १. घोरांधकाररुद्धाक्षैः पतन्ती यत्र जन्तवः । नैव भोज्ये निरीक्ष्यन्ते, तत्र भुंजीत को निशि । – योगशास्त्र, ३।४९; - दशवैकालिक, ४|१३; १५ १ २. स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा, ३८२ ३. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, ५।२१ ४. योगशास्त्र, ३१४८-७० ५. सावयवधम्म दोहा, ३७ ६. चारित्रसार, पृ० १९ ७. उपासकाध्ययन, ८५३ ८. वसुनन्दि श्रावकाचार, २९६ ९. अमितगति श्रावकाचार, ७।७२ १०. सागारवर्मामृत, ७।१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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