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________________ योग के साधन : आचार ९१ न्याश्रित हैं तथा एक-दूसरे के पूरक भी । श्रावक नवकोटि से सर्वथा मृषावाद का त्याग नहीं कर सकता, क्योंकि उसे जीवन-यापन के लिए व्यवहार-व्यापार करना पड़ता है । असत् कथन को अनृत' अर्थात् हेय माना गया है । असत्य की विभिन्न ग्रन्थों में कई कोटियाँ वर्णित हैं । पुरुषार्थसिद्धयुपाय एवं अमितगति श्रावकाचार में असत्य के चार भेद किये गये हैं, जैसे (१) सद्आलापन, (२) अस आलापन, (३) अर्थान्तर तथा (४) निंद्य । उपासकाध्ययन के अनुसार असत्यासत्य ( २ ) सत्यासत्य, (३) सत्यसत्य, एवं ( ४ ) असत्य - असत्य - इन चार प्रकारों का उल्लेख है । असत्य के पाँच भेद भी बताये गये है- कन्यालीक, गौअलीक अर्थात् गवालीक, भूम्यलीक, न्यासापहार एवं कूटसाक्षी ।" सागारधर्मामृत में भी यही बात है । कन्यादि के वैवाहिक संबंध की बातचीत में झूठ बोलना कन्यालीक है। पशुओं की खरीद-बिक्री में झूठ का व्यवहार गौअलीक अर्थात् गवालीक है । भूमि की खरीद-बिक्री में मिथ्याभाषण करना भूम्यलीक है । दूसरों की अमानत धरोहर को हजम करना न्यासापहार है । और उसी प्रकार कचहरी के कामों में झूठा व्यवहार करना कूटसाक्षी है । स्थूलमृषावाद अथवा असत्य व्यवहार के त्यागी श्रावक को सत्याणुव्रत के पालन में सावधानी रखनी चाहिए। सत्याणुव्रत के पाँच अतिचार हैं, जो विभिन्न ग्रंथों में अनेक नामों से वर्णित हैं । उपासकादशांग सागारधर्मामृत, पुरुषार्थसिद्धयुपाय, अमितगतिश्रावकाचार, १० योग १. असदभिधानमनृतम् । - तत्त्वार्थसूत्र, ७।१४ २. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, ९१-९८ ३. अमितगतिश्रावकाचार, ६।४९-५४ ४. उपासकाध्ययन, ३८३ कन्यागोभूम्यलीकानि, न्यासापहरणं तथा । कूटसाक्ष्यंच पंचेति, स्थूलासत्यान्यकीर्त्तयन् । – योगशास्त्र, २०५४ ६. सागारधर्मामृत, ४, ३९ ७. उपासकदशांग, १/४६ ८. सागारधर्मामृत, ४ । ४५ ९. पुरुषार्थसिद्धघुपाय, १८४ १०. अमितगतिश्रावकाचार, ७१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only ७ www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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