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साना,
योग के साधन : आचार हो।' आप्तवचनों के प्रति श्रद्धान, रुचि, अनुराग, आदर, सेवा एवं भक्ति रखने से सत्य का साक्षात्कार होता है। ___जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा तथा मोक्ष के प्रति श्रद्धान या विश्वास ही सम्यक्त्व है। आत्मा परद्रव्यों से भिन्न है, यह श्रद्धा ही सम्यक्त्व है। इस प्रकार सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए सच्चा गुरु एवं धर्म-बुद्धि आवश्यक है, जिनके द्वारा यथार्थ-अयथार्थ का विवेक उत्पन्न होता है। सम्यक्त्व के पांच लक्षण १. शम-क्रोध, मान, माया तथा लोभ का उदय न होना, २. संवेग-मोक्ष की अभिलाषा, ३. निर्वेद-संसार के प्रति विरक्ति, ४. अनुकम्पा-बिना भेदभाव के दुःखी जीवों के दुःख को दूर करने की
भावना, ५. आस्तिक्य--सर्वज्ञ वीतराग द्वारा कथित तत्त्वों पर दृढ़ श्रद्धा। सम्यक्त्व के पच्चीस दोष
सम्यक्त्व के पच्चीस दोष माने गये हैं, जो सम्यक्त्व की प्राप्ति के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करते हैं। उनसे साधक को रहित होने का १. पुह तण्हा भय दोसो रायो मोहो जरा रुजा चिन्ता ।
मिच्चू खेओ सेओ अरइ मओ विम्हओ जर्म । निद्दा तहा विसाओ दोसा एएहिं वज्जिओ अता । वयणं तस्य पमाणं संतत्त्थपरुवयं जम्हा ॥ -वसुनन्दि श्रावकाचार, ८-९ अर्थात्-क्षुधा, तृषा, भय, द्वेष, राग, मोह, जरा, रोग, चिन्ता, मृत्यु, खेद, स्वेद, अरति, मद, विस्मय, जन्म, निद्रा और विषाद ये अठारह दोष हैं । जो आत्मा इन दोषों से रहित है, वही आप्त है और इसी आप्त के वचन
प्रमाण माने जाते हैं। २. (क) तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् । -तत्त्वार्थसूत्र, १२
(ख) जीवाजीवास्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम् ।-वही, ११४
(ग) रुचिजिनोक्ततत्त्वेषु, सम्यक् श्रद्धानमुच्यते ।-योगशास्त्र, १११७ ३. परद्रव्यनतें भिन्न आपमें रुचि, सम्यक्त्व भला है। -छहढाला, ३१२ ४. शम-संवेग निर्वेदानुकम्पाऽऽस्तिक्य लक्षणेः।
लक्षणः पंचभिः सम्यक्, सम्यक्त्वमुपलक्ष्यते ॥ -योगशास्त्र, २०१५
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