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योग के साधन : आचार
विधानों एवं कर्तव्यों का वर्णन है तथा योगी साधक के लिए गृहस्थाश्रम महत्त्वपूर्ण माना गया है । सदाचार, दम, अहिंसा, दान, कर्तव्य, स्वाध्याय आदि एवं योगाभ्यास द्वारा आत्म-दर्शन करना चाहिए तथा इन्द्रियों को विषयों से रोककर सिद्धि प्राप्त करनी चाहिए | 3
महाभारत तो वैदिक संस्कृति का आचार - कोश ही है । इसमें पग-पग पर गृहस्थ, योगी, त्यागी आदि के आचार, विचार, आहार आदि सम्बन्धी वर्णन भरा है। इसमें जहाँ मन, इन्द्रिय, सत्य, काम, क्रोधादि कषायों का निरूपण है वहाँ व्रत, उपवास, ब्रह्मचर्य, अतिथि सेवा" का भी विधान है । गृहस्थ सम्बन्धी कर्त्तव्यों का पालन करने पर विशेष जोर देते हुए कहा गया है कि वही साधक परमात्मा को प्राप्त करता है जो गृहस्थ-धर्म का सम्यक् रूप से पालन करता है । ७
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गीता महाभारत का ही एक अंग है । इसमें भी विभिन्न योगों के माध्यम से यज्ञ में होनेवाली हिंसा को अनावश्यक' बताया गया है और अहिंसा, समता सन्तोष, तप, कीर्ति आदि भावों के सम्यक् पालन का उपदेश है । इसमें यति मुनि को इन्द्रियसंयमी, इच्छाभयरहित, क्रोधरहित, मोक्षपरायण तथा मुक्त १० माना गया है और वेदविद् तथा वीतराग कहा गया है | 19 इस प्रकार गीता में विभिन्न प्रकार के आचार
१. ( क ) मनुस्मृति, अध्याय २, ३७७
(ख) याज्ञवल्क्यस्मृति ( ब्रह्मचारी प्रकरण ), १७-२३; ( गृहस्थप्रकरण ) ९७ - १०३ ; ११८ - २४
२. इज्याचारदमा हिसादानं स्वाध्यायकम्मं च ।
अयं तु परमो धर्मो यद्योगेनात्मदर्शनम् ॥
३. इंद्रियाणां प्रसंगेन दोषमृच्छत्यसंशयम् ।
संनियम्य तु तान्येव ततः सिद्धि नियच्छति || - मनुस्मृति, २ ९३
४. महाभारत, आपद्धर्म, अध्याय, १६०
५. वही, मोक्षधर्म, २२१
७. वही, मोक्षधर्म, २२०
९. अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः । - वही, १०१५ १०. यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः ।
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- याज्ञवल्क्यस्मृति, ८
६. वही, शान्तिपर्व, १२
८. भगवद्गीता, ४ २३- ३३
विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः । - वही ५।२८
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११. वही, ५।२६ ; ८ ११
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