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________________ जैन योग का आलोचनात्मक अध्ययन योग की सम्पन्नता एवं सफलता अथवा चारित्र की प्राप्ति के लिए गृहस्थों ( श्रावकों ) एवं श्रमणों ( साधुओं) के आचार-विचारों के विधान अलग-अलग हैं; क्योंकि दोनों की साधना-भूमि अथवा जीवनव्यवहार अलग-अलग हैं । इस दृष्टि से श्रावकाचार एवं साध्वाचार का दिग्दर्शन आवश्यक जान पड़ता है । इस सन्दर्भ में यह भी निर्देश कर देना आवश्यक प्रतीत होता है कि जैन श्रावक अपने सम्यक् आचार-विचार के परिपालन से साधुत्व तक पहुँच सकता है एवं साध्वाचार के सम्यक् परिपालन से मोक्ष प्राप्त कर सकता है । इस दृष्टि से योग के विकास एवं महत्त्व के प्रतिपादन के लिए क्रमशः वैदिक, बौद्ध एवं जैन आचार - विकास का सिंहावलोकन करना भी आवश्यक होगा । ७६ वैदिक परम्परासम्मत आचार यद्यपि वेदकालीन साहित्य के अनुसार ऐहिक सुख प्राप्ति ही जीवन का लक्ष्य रहा है, तथापि संहिताओं के अध्ययन से ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों के हृदय में सत्य, दान, आदि के प्रति सम्मान था, क्योंकि विविध प्रकार के नियमों, गुणों एवं दण्डों के प्रवर्तकों के रूप में विभिन्न देवों की कल्पना की गयी है । ' उपनिषदों में दार्शनिक भित्ति पर सदाचार, सन्तोष, सत्य आदि आत्मिक गुणों का विधान है और इन्हें आत्मानुभूति के लिए आवश्यक माना गया है, क्योंकि उन गुणों के आचरण से श्रेय की प्राप्ति होती है । यही कारण है कि उपनिषदों में ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, सत्य आदि व्रतों के पालन का आदेश है और साधक के लिए साध्य की ओर बढ़ने के लिए दस यमों का संयमपूर्वक पालन करना तथा शुद्ध आत्म-तत्त्व की पहचान करना आवश्यक माना गया है । " स्मृतिशास्त्रों में आचार, विचार, व्यवहार, प्रायश्चित्त, दण्ड आदि का विधान विस्तारपूर्वक वर्णित है, जिनमें चारों आश्रम ( ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास ) एवं चारों वर्णो सम्बन्धी विधि १. जैन आचार, पृ० ९ २. ब्रह्मचर्यमहिंसां चापरिग्रहं च सत्यं च यत्नेन । - आरुणिकोपनिषद्, ३ ३. तत्राहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यं दयाजपक्षमाधृतिमिताहारशौचानि चेति यमा दश । - शाण्डिल्योपनिषद्, १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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