________________
८६ : जैनमेघदूतम् कितनी सुकोमल-कुमारी-कल्पनाएँ संजो रखी होंगी ? किन्तु अकस्मात् यह क्या ? नव-वधू का चूंघट-पट उठने से पूर्व ही यह निर्मम पटाक्षेप कैसा ?
परन्तु भारतीय नारी भी अपने आदर्श के प्रति सदैव अडिग रही है, वह जीवन में अपने पति का चयन एक ही बार करती है। अतः इसी विचार व आदर्श स्वरूप राजीमती ने भी पति-स्वरूप श्रीनेमिनाथ को ही अपने मन-मन्दिर में प्रतिष्ठित किया था। विवाह-महोत्सव का त्याग कर वन की ओर चले जाने के समाचार ने गिरिनगर में तो मानो वज्रपात ही कर दिया था। नगर के सभी माङ्गलिक-अनुष्ठान समाप्त कर दिये गये थे । इधर इस दुःखद समाचार से महारानी, राजीमती एवं सखियों का करुणक्रन्दन एवं हाहाकार की करुण-चीत्कारे सर्वत्र पाषाण-हृदयों को भी तरलीभूत किये जा रही थीं।
काव्य की कथावस्तु को समझने के लिए इतनी पूर्व कथा आवश्यक प्रतीत होने के कारण ही दी गयी है । इस पूर्वकथा के पश्चात् की कथा को कवि मेरुतुङ्ग ने अपने जैनमेघदूतम् काव्य में प्रस्तुत किया है। अतः अब सर्ग के क्रम के अनुसार जैनमेघदूतम् की कथावस्तु संक्षेप में प्रस्तुत की जा रही हैप्रथम सर्ग कथा : ____काव्य के प्रथम सर्ग में श्रीनेमिनाथ की बालक्रोडा व पराक्रमलीला का वर्णन किया गया है। कवि ने काव्य के प्रारम्भ में श्रीनेमि के विवाह-महोत्सव का त्यागकर चिदानन्द सुख-प्राप्ति के हेतु रैवतक पर्वत पर चले जाने का वर्णन किया है।' तत्पश्चात् कामजित् श्रीनेमि की भावी पत्नी राजीमती को, कामदेव ने यह जानकर कि यह हमारे शत्रु श्रीनेमि की भक्त है, अत्यन्त पीड़ित किया। जिस कारण प्रियविरहिता भोजकन्या (राजीमती) मूच्छित हो गयी। राजीमती की सखियाँ अपने शोक गद्गद् वचनों एवं लोकप्रसिद्ध चन्दन-जला-वस्त्रादि प्रभूत शीतोपचार द्वारा उसकी चेतना वापस लाती हैं और तब राजीमती हृदय में तीव्र उत्कण्ठा जगाने वाले मेघ को देखकर सोचती है कि उन भगवान् श्रीनेमि ने अपने में आसक्त तथा तुच्छ मुझको किस कारण साँप की केंचुल की भाँति छोड़ दिया है। इन विचारों में उलझती हुई नवीन १. जैनमेघदूतम्, १/१ । २. वही, १२ । ३. वही, १/७ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org