SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका : ८७ मेघों से सिक्त भूमि की तरह निःश्वासों को छोड़ती हुई तथा मदयुक्त मदन के आवेश के कारण युक्तायुक्त का विचार न करती हुई राजीमती, जिस प्रकार मेघमाला प्रभूत जल को बरसाती है उसी प्रकार अश्रुधारावृष्टि करती हुई, दुःख से अतिदीन होकर तथा श्री नेमि का हृदय में ध्यान कर मधुर वाणी में मेघ का सर्वप्रथम स्वागत करती है, फिर उसका गुणगान भी करती है ।२ तत्पश्चात् वह मेघ से श्रीनेमि के चरित्र का विस्तृत वर्णन करती है। इसके अन्तर्गत श्रीनेमि की बालसुलभ क्रीडाओं एवं पराक्रम लीलाओं का वह अत्युक्ति पूर्ण वर्णन करती है। द्वितीय सर्ग कथा : __ द्वितीय सर्ग में वसन्त-वर्णन किया गया है, जिसमें श्रीनेमि की विविध भाँति की वसन्त-क्रीडाओं का वर्णन हुआ है । वसन्तागमन से वन-उपवनों एवं तडाग-पर्वतों की शोभा अत्यन्त रमणीय व मनोहारी हो गयी थी। इस प्रकार वसन्त-वर्णन के पश्चात् राजीमती कथा-प्रसंग को पुनः आगे बढ़ाती हुई श्रीनेमि एवं श्रीकृष्ण की वसन्तक्रीडा का वर्णन करती है।" __ तदनन्तर राजीमती मेघ से श्रीनेमि के साथ श्रीकृष्ण की पत्नियों की वसन्त-क्रीडा का वर्णन करती है। परन्तु वह यह वर्णन कर ही रही थी कि तभी पूष्पित पारिजात से सुशोभित श्रीनेमि के मनोहारी स्वरूप का स्मरण करती हुई राजीमती मौनभाव से सोई हुई की तरह पुनः मूच्छित हो जाती है तब उसकी सखियाँ चन्दनयुक्त जलधारा से उसे किसी प्रकार सचेत करती हैं। सचेत होने पर राजीमती अपनी अधूरी कथा को पुनः प्रारम्भ करती हुई मेघ से श्रीनेमि तथा श्रीकृष्ण को वसन्त-क्रीडा के पश्चात् ग्रीष्म ऋतु का वर्णन करती है जो कि मानो स्वामि-सेवाशील भृत्य की भाँति अपने फल का उपहार देने के लिए वहाँ आ पहुंची थी।' १. जैनमेघदूतम्, १/१० । २. वही, १/११, १२, १३ । ३. वही, २/२-११ । ४. वही, २/१२-१७। ५. वही, २/१८-२२। ६. वही, २/२४ । ७. वही, २/२५ । ८. वही, २/२९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy