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भूमिका : ८३ हैं। अप्रकाशित व अनुपलब्ध ग्रन्थों की महत्ता तथा उनकी कोटि के आकलन का तो प्रश्न ही नहीं, परन्तु आचार्य श्री के जितने भी ग्रंथ प्रकाश में अब तक आ चुके हैं, उनके आधार पर भी यदि हम आचार्य श्री की साहित्यिक-प्रतिभा का मूल्याङ्कन करें तो यह निस्सन्देह ही कहना होगाआचार्य श्री मेरुतुङ्गसूरि द्वारा प्रदत्त यह ग्रन्थगुच्छ-उपहार युग-युग तक जनमानस को सुवासित रखेगा तथा पथ-विमुक्त दिग्भ्रान्त मानव को अपने सुमधुर शान्त रस का रसास्वादन कराकर अमृत-कलश का स्थान ग्रहण करेगा।
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