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भूमिका : ८१ (१८) स्तम्भक पार्श्वनाथ प्रबंध : इस ग्रंथ की रचना भी आपने संस्कृत भाषा में की है । इसका भी मात्र नामोल्लेख ही हुआ है।
(१९) नाभिवंश काव्य : आचार्य श्री द्वारा रचित इस महाकाव्य का मात्र नामोल्लेख मिलता है ।२।।
(२०) सूरिमन्त्र कल्प : सूरिमन्त्र की महिमा प्राचीन जैन साहित्य में विशेष रही है। 'अंचलगच्छ विचारव्यवस्था' नामक हस्तलिखित ग्रन्थ में इस मन्त्र की अनिवार्यता निदर्शित की गयी है। प्रत्येक गच्छनायक को इस कल्प की साधना करनी चाहिए। इसी आधार पर आचार्य श्री मेरुतुङ्गसूरि ने रहस्यों से निगूठित इस मन्त्र की रचना की है।
(२१) यदुवंशसम्भव कथा : इस संस्कृत महाकाव्य की रचना भी आचार्य श्री ने की है । इसका भी उल्लेख श्री पार्श्व ने किया है ।
(२२) नेमिदूत महाकाव्य : श्री पार्श्व ने नेमिदूत नामक एक महाकाव्य की रचना भी आचार्य श्री द्वारा माना है। उन्होंने इस महाकाव्य का नामोल्लेख भी किया है।
(२३) कृवृत्ति : ऐसा प्रतीत होता है कि यह आचार्य श्री द्वारा रचित कातन्त्र व्याकरण की टीका का एक खण्ड ही है। ऐसा ही उल्लेख श्री पार्श्व ने भी किया है। ___ (२४) कातन्त्र व्याकरण बालावबोध वृत्ति : कातन्त्र व्याकरण नामक इस व्याकरणपरक ग्रंथ की आपने संस्कृत में बालावबोध वृत्ति विक्रम संवत् १४४४ में रची। इस ग्रन्थ का पूर्वनाम 'कालापक व्याकरण' था। इसी का अपरनाम 'आख्यातवृत्ति टिप्पण' भी सम्भव है।' ___(२५) उपदेशचिन्तामणि वृत्ति : मुनि श्री जयशेखरसूरि द्वारा विरचित उपदेशचिन्तामणि नामक ग्रन्थ पर आपश्री ने ११६४ श्लोकपरिमाण की संस्कृत-वृत्ति रची है ।
(२६) नाभाकनृपकथा : विक्रम संवत् १४६४ में आपश्री ने संस्कृत गद्य-पद्य मय कथानक के रूप में इस कति की २९४ श्लोकों में रचना को
१. अंचलगच्छदिग्दर्शन : श्रीपार्श्व, पृ० २२२ । २. वही, पृ० २२२ । ३. वही, पृ० २२३। ४. वही, पृ० २२३ । ५. वही, पृ० २२३ । ६. वही, पृ० २२१ ।
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