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७८ : जैनमेघदूतम्
की रचनाओं की कुल संख्या ३६ बतायी है । अतः यहाँ पर इन विभिन्न ग्रन्थों का आधार लेकर इनके उल्लिखित ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय अवश्य दृष्टव्य है । अतएव यहाँ पर आचार्य श्री मेरुतुङ्गसूरि द्वारा रचित ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है
(१) षड्दर्शनसमुच्चय : इस ग्रन्थ का अपरनाम 'षड्दर्शननिर्णय' है । ग्रन्थ विक्रम संवत् १४४९ के पूर्व का रचा हुआ है क्योंकि सप्ततिभाष्य टीका में इस ग्रन्थ का उल्लेख हुआ है-काव्यं श्री मेघदूताख्यं षड्दर्शनसमुच्चयः । अत्यल्पकाय होने पर भी अनेक दृष्टियों से भारतीय दर्शनजगत् में इस ग्रन्थ का अपूर्व स्थान है। इसमें बौद्ध, मीमांसा, वेदान्त, सांख्य और वैशेषिक दर्शनों के मूल सिद्धान्तों को वर्णितकर उनका खण्डन करते हुए जैन दर्शन को स्व-तर्कों से परिपुष्ट किया गया है। संक्षिप्त होकर भी तत्त्वनिर्णय-सम्बन्धी इसके तर्क सचोट, प्रमाणयुक्त एवं निर्णयात्मक हैं। यह ग्रन्थ गूर्जर अनुवाद सहित मुनि श्री कलाप्रभसागरजी के कुशल सम्पादकत्व में प्रकाशित भी हो गया है ।" वैसे इसकी एक हस्तलिखित प्रति सेण्ट्रल लाइब्रेरी, बम्बई में सुरक्षित है ।
(२) बालावबोध व्याकरण: इस ग्रन्थ के अपरनाम 'मेरुतुङ्गव्याकरण' और 'कुमार-व्याकरण' हैं । वैसे श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने इस ग्रन्थ के - 'व्याकरण चतुष्क बालावबोध' तथा 'तद्धित बालावबोध' दो अन्य नाम भी बताये हैं । यह ग्रन्थ भी विक्रम संवत् १४४९ के पूर्व का ही रचा हुआ है तथा इस पर आचार्य श्री द्वारा ही रचित वृत्ति का भी उल्लेख है, क्योंकि सप्ततिभाष्य टीका की प्रशस्ति में इस ग्रन्थ का भी नामोल्लेख (वृत्ति सहित ) है - वृत्तिर्बालावबोधाव्या धातुपारायणं तथा । व्याकरणसम्बन्धी अति गूढ़ तत्त्वों को सुबोध रूप देने वाला यह ग्रन्थ, अपने में विरल है तथा आचार्य श्री के व्याकरण विषयक गहन ज्ञान का परिचायक है ।
(३) जैनमेघदूतम् : आचार्य श्री मेरुतुङ्गसूरि द्वारा रचित इसी ग्रन्थ का समग्र साहित्यिक विश्लेषण तथा हिन्दी - अनुवाद सहित मूल हो प्रस्तुत पुस्तक का ग्राह्य विषय है । एतदर्थ इस ग्रन्थ के विषय में विस्तृत सूचनाएँ समग्र पुस्तक में प्राप्त होंगी ।
१. श्री आर्य - जय - कल्याणकेन्द्र, श्री गौतम-नीति गुणसागरसूरि जैन मेघ संस्कृति भवन, ठे० लालजी पुनशी वाडी, देरासरलेन, घाटकोपर (पूर्व), बम्बई -
४०००७७ ।
२. जैन गुर्जर कविओं : मो० द० देसाई, भाग ३, पृ० १५७२ ।
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