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________________ ७६ : जैनमेघदूतम् तबसे आचार्य श्री मेरुतुङ्गसूरि जी तप-संयम की आराधना करते हुए योगाभ्यास में विशेष रुचि लेने लगे । प्राणायाम, हठयोग, राजयोग आदि यौगिक क्रियाओं द्वारा वे नियमित रूप से ध्यानावस्थित होने लगे । वे प्रतिदिन कायोत्सर्ग द्वारा आत्मा को अतिशय निर्मल करने लगे । पाटण में ही एक बार जब वे अपनी शिष्य मण्डली के साथ विहार कर रहे थे, तभी मार्ग में यवन सैनिक मिल गये और साधुओं को त्रास देकर अपने कब्जे में करने लगे । इस पर आचार्य श्री जी तुरन्त यवनराज के पास पहुँचे । उनके विशाल एवं तेजस्वी ललाट को देखते ही यवनराज विस्मित सा हो गया और उसका हृदय पलट गया। उसने तत्काल सभी साधुओं को मुक्त कर दिया । इसी प्रकार खम्भात, सायोर व बाडमेर में जब वे विराजमान थे, तब उन नगरों पर शत्रुओं ने हमला कर दिया । परन्तु आचार्य श्रीसूरिजी के ध्यान व प्रभाव के कारण शत्रु पलायित हो उठे । एक बार आचार्य श्रीसूरिजी आबू पर्वत के जिनालयों का दर्शन कर रहे थे कि सन्ध्या हो गयी । अतः आचार्य श्री को अपनी पगडण्डी वाला मार्ग विस्मृत हो गया और वे किसी विषमस्थान में पहुँच गये । परन्तु तभी विद्युत् की भाँति प्रकाशित किसी देव ने प्रकट होकर उनको मार्गदर्शन करवा दिया । चक्रेश्वरी भगवती विहितप्रसादाः श्री मेरुतुङ्गगुरवो नरदेववंद्याः यह उल्लेख स्पष्ट करता है कि आचार्य मेरुतुङ्गसूरि चक्रेश्वरीदेवी के विशिष्ट कृपापात्र थे । इसी प्रकार आचार्य मेरुतुङ्गसूरि ने अन्य अनेक नृपति- गणों को भी प्रतिबोधित किया था । उपाधियाँ : इस प्रकार आचार्य श्री मेरुतुङ्गसूरि से सम्बन्धित अनेकानेक अवदात उल्लिखित मिलते हैं । इन्हीं अवदातों के कारण ही आचार्य श्री को "मन्त्र- प्रभावक", "महिमानिधि" आदि मानद उपाधियों से सम्बोधित किया गया है। आचार्य श्री मेरुतुङ्गसूरि के प्रभावी उपदेशों के कारण ही वींछीवाडा, सिंहवाडा, पुनासा, वडनगर आदि अनेक नगरों में जिनालयों का निर्माण हुआ तथा उनमें धातु- प्रतिमाओं की प्रतिष्ठापनाएँ भी हुईं । शिष्य परिवार : आचार्य श्री मेरुतुङ्गसूरि का शिष्य परिवार भी अतिविशाल था । इन्होंने छः आचार्य, चार उपाध्याय तथा एक महत्तरा प्रभृति संख्या - बद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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