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________________ भूमिका : ७५ विचार से आ गया । सारे नागरिक भयभीत हो गये, तब नागरिकों के भय-निवर्तनार्थ आचार्य मेरुतुङ्गसूरि ने सवा मन चावल अभिमन्त्रित कर, श्रावकों द्वारा यवन सेना के समक्ष फिकवा दिया, जिनसे शस्त्रधारी घुड़सवार प्रकट होकर मुहम्मद सुल्तान की सेना का नाश करने लगे। इससे सुल्तान घबड़ाया और अन्त में आचार्य श्री से प्रतिबोध प्राप्त कर वापस लौट गया। इस प्रसंग पर लोलाइड संघ ने आचार्य श्री से विनती की कि "आप प्रत्येक वर्ष यहीं चातुर्मास व्यतीत करें"। मेरुतुङ्गसूरि सघ की इस विनती को स्वीकार कर प्रतिवर्ष का चातुर्मास उसी नगर में व्यतीत करने लगे। एक बार आचार्य मेरुतुङ्गसूरि कायोत्सर्ग-ध्यान में स्थित खड़े थे कि एक विषैले काले सर्प ने उनके पर में काट लिया। परन्तु सूरिजी दमदन्त, चिलातीपुत्र आदि की भांति ध्यान में ही स्थिर व अचल रहे । कायोत्सर्ग ध्यान पूर्ण होने पर मन्त्र, तन्त्र आदि प्रयोगों को छोड़कर भगवान् श्रीपार्श्वनाथ की प्रतिमा के समक्ष वे ध्यानस्थ-मुद्रा में बैठ गये और "त्रैलोक्य विजय" नामक महामन्त्र द्वारा प्रभु श्री पार्श्व की स्तुति करने लगे । ध्यान और स्तुति के प्रभाव से सर्प-विष अमत में परिणत हो गया। प्रातः आचार्य जब व्याख्यान देने के हेतु संघ के समक्ष आये तब संघ में अपार हर्ष की लहर फैल गयी। लोलाइड नगर के मुख्य द्वार के पास एक बिल में एक बहुत विशालकाय भयंकर अजगर साँप रहता था। लोग उस अजगर से बहुत डरते थे। लोगों की विनती पर मनि श्री मेरुतुङ्गसरि ने अपने मन्त्र-बल से उस अजगर को नगर से बाहर कर दिया। .. तदनन्तर आचार्य श्री मेरुतुङ्गसूरि अणहिलपुर पाटण पधारे । यहाँ आने पर "गच्छनायक" पद से सरि जी को अलंकृत करने के लिए सुमुहूर्त विचार कर नाना प्रकार की तैयारियाँ होने लगीं। पाटण नगर में तोरण, वंदनवारों से सुसज्जित विशाल मण्डप बनाये गये। सम्पूर्ण नगर विभिन्न प्रकार के वाद्ययन्त्रों की स्वर-लहरियों से गुजरित हो उठा । फाल्गुन वदी एकादशी विक्रम संवत् १४४५ के दिन आचार्य श्री महेन्द्रप्रभसूरि जी ने श्री मेरुतुङ्गसूरि को “गच्छनायक" की पदवी देकर सारी अचलगच्छधुरा उनको समर्पित कर दी। साथ ही श्री रत्नशेखरसूरिजी को उपाचार्य स्थापित किया गया। यह "गच्छनायक-पद-समर्पणमहोत्सव" संघपति नरपाल के सान्निध्य में सानन्द सम्पन्न हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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