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भूमिका : ७३ नालदेवी' नामक अत्यन्त शीलवती कन्या से उस पुत्र का पाणिग्रहणसंस्कार हुआ। किंचित् कालानन्तर एक बार नालदेवी को महनीय कुक्षि में एक अतीव पुण्यशाली जीव देवलोक से आकर अवतीर्ण हुआ, फलतः उस प्रभावी जीव के प्रभाव से नालदेवी ने स्वप्न में देखा कि सहस्त्रकिरणपंज सहित रवि मेरे मुख में प्रविष्ट हो रहा है। तभी चक्रेश्वरी देवी ने तत्काल आकर इस महास्वप्न के प्रभावी फल को नालदेवी से बताया कि तुम्हारी कुक्षि से ज्ञानकिरणयुक्त रवि की भाँति महाप्रतापी, तेजस्वी एवं मुक्तिमार्ग-प्रकाशक एक पुत्र जन्म-ग्रहण करेगा, जो अपरिग्रह भाव से संयम-मार्ग का अनुगमन करता हुआ एक युगप्रधान-योगीश्वर होगा। चक्रेश्वरी देवी के इन वचनों का ध्यानपूर्वक श्रवण कर एवं उसको आदर-सम्मान देती हई, नालदेवी तबसे धर्मध्यान में अत्यधिक अनुरक्त हो अपने गर्भस्थ शिशु का यथाविधि पालन करने लगी। ___ गर्भस्थ शिश शनैः शनैः वृद्धि प्राप्त करता रहा एवं विक्रम संवत् १४०३ में पंचग्रहों के उच्च स्थान पर चले जाने पर एवं गर्भकाल पूर्ण होने पर माता नालदेवी ने उस पुत्र को जन्म दिया । वहोरा वयरसिंह के कुल-परिवार में हर्षोल्लासपूर्वक खुशी की शहनाईयाँ बज उठीं। हर्षपूर्ण उत्सव के साथ पुत्र का नाम वस्तिगकुमार रखा गया। वस्तिगकुमार चन्द्र की भाँति दिन-प्रतिदिन क्रमशः उत्तरोत्तर वृद्धि की ओर अग्रसर होता रहा और उसके जीवन चरित्र में समस्त सद्गुण निवास करने हेतु स्वतः आने लगे। बालक वस्तिग अभी शैशव की किलकारियाँ भरता हुआ बाल्यावस्था की दहलीज पर अपने पग रख ही रहा था कि उसी बीच नाणी ग्राम में अचलगच्छीय आचार्य महेन्द्रप्रभसूरि का शुभागमन हो गया। आचार्य श्री महेन्द्रप्रभसूरि के सारगर्भित मुक्तिप्रदायी उपदेशों के श्रवण से अतिमुक्तकुमार की तरह सांसारिक सुखोपभोगों के प्रति आसक्ति-रहित होकर बालक वस्तिग ने मात्र सात वर्ष की अल्पवय में ही माता-पिता की आज्ञा प्राप्तकर विक्रम संवत १४१० में आचार्य श्री महेन्द्रप्रभसूरि से दीक्षा ग्रहण कर ली । इस दीक्षा-महोत्सव में वस्तिगकुमार के माता-पिता ने प्रचुर द्रव्य आदि का दान एवं व्यय किया।। १. पट्टावली में पत्नी का नाम “नाहुणदेवी" है, “नालदेवी" नाम रास में
वर्णित है, अन्यत्र भी। २. व्याख्यान पद्धति में पुत्र का नाम "वस्तो" है, गच्छ की गूर्जर पट्टावली
में "वस्तपाल" नाम दिया गया है । ३. अचलगच्छीय म्होटी पट्टावली में दीक्षा का काल विक्रम संवत् १४१८
दिया हुआ है।
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