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________________ ७० : जैनमेघदूतम् जा सकता है कि काव्य के रचयिता श्री पूर्णसारस्वत जी हैं। काव्य का रचनाकाल १३वीं शताब्दी का प्रथमाद्ध अनुमानित होता है। काव्य की कथा स्वतन्त्र एवं काल्पनिक ही है। कोई एक स्त्री, किसी महोत्सव में श्रीकृष्ण की विजय यात्रा को देखकर, उन पर मुग्ध हो जाती है। एक दिन कृष्ण-विरह में चिन्तित वह पुष्पवाटिका पहुँचती है, वहाँ उसने एक राजहंस देखा। उसने उसी हंस को अपना दूत बनाकर अपना सन्देश श्रीकृष्ण के पास भेजा। समग्र काव्य में कुल १०२ श्लोक हैं। छन्द भी मन्दाक्रान्ता ही है। विशुद्ध विप्रलम्भ-शृङ्गार के स्थान पर इस काव्य में दिव्य कृष्णभक्ति का आलोक अधिक मिलता है। हंससन्देश' : इस दूतकाव्य का रचनाकार अज्ञात ही है। कथावस्तु जैसी कोई चीज भी इस काव्य में विशेष नहीं है । मात्र वेदान्त विषय को समझाने हेतु प्रतीक शैली में यह सन्देशकाव्य रचा गया है। एक शिवभक्त शिवभक्ति रूपी अपनी प्रेयसी के सुखद सम्पर्क से अद्वैतानन्द में मग्न था। पूर्व-कर्म के प्रभाव से माया के वशीभूत हो वह अपनी प्रिया शिवभक्ति से एकदा वियुक्त हो जाता है। कुछ दिनोपरान्त वह अपने मानस-हंस को दूत बनाकर शिवलोक में अपनी प्रेयसी शिवभक्ति के पास भेजता है। विषय की दृष्टि से यह सन्देशकाव्य दार्शनिक परिवेश में रचा गया है। सन्देशकाव्यों की परम्परा में यह काव्य विषय की दृष्टि से एक विशुद्ध नवीन दिशा का निर्देश करता है। हंससन्देश : इस दूतकाव्य के कर्ता के विषय में सब कुछ अज्ञात ही है। इस काव्य में हंस को दूत के रूप में नियुक्त कर एक वियुक्त प्रेमी अपनी प्रेमिका के पास अपना सन्देश भेजता है। हृदयदूतम् : कवि श्री भट्टहरिहर जी द्वारा विरचित इस दूतकाव्य में हृदय को दूत बनाकर भेजा गया है । कथा स्वतन्त्र रूप से कल्पित की गयी है। जिसमें एक नायिका अपने प्रिय नायक के पास अपना सन्देश, हृदय को ही दूत के रूप में मानकर उसके द्वारा भेजती है। काव्य अति लघु है, पर चमत्कारपूर्ण है। इंदिरेश भट्ट के मनोदूत के साथ ही यह दूतकाव्य प्रकाशित भी हुआ है। १. त्रिवेन्द्रम संस्कृत सीरीज, मद्रास के ग्रन्थसंख्या १०३ के रूप में सन् १९३० में प्रकाशित । २. गवर्नमेण्ट ओरियण्टल मैनस् क्रिप्ट्स लाइब्रेरी, मद्रास में प्रति उपलब्ध; अप्रकाशित । ३. चुन्नीलाल बुक्सेलर, बड़ा मन्दिर, भुलेश्वर, बम्बई से प्रकाशित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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