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६८ : जेनमेषदूतम्
वृन्दावन से मथुरा आ जाते हैं । कृष्ण के चले जाने पर राधा अपनी सखियों के साथ यमुना के किनारे आती हैं । अति विरह से व्याकुल कृष्ण को याद करती करती वहीं मूच्छित हो जाती हैं, यह दशा देखकर ललिता नाम की एक सखी ने यमुना में विचरते एक हंस को देखकर उसी को दूत बना श्रीकृष्ण के पास भेजा काव्यकला की दृष्टि से यह दूतकाव्य एक पूर्णतया सफल दूतकाव्य है ।
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श्री रघुनाथ दास
काव्यकार का हंस को
ही चुना गया है ।
हंसदूतम् ' : इस दूतकाव्य के जी है । इस दूतकाव्य में भी दूत के रूप में कथानक संक्षेप में इस प्रकार प्राप्त होता है कि जब मथुरा 'चले आते हैं, तब उनके वियोग में राधाजी हैं । उस समय ललिता नाम की उनकी एक सखी वृन्दावन में एक हंस को देखकर उसके माध्यम से राधा की विरह-दशा का सन्देश श्रीकृष्ण के पास भिजवाती है ।
श्रीकृष्ण वृन्दावन मूच्छित हो जाती
से
नाम
काव्य का प्रत्येक वर्णन अति रमणीय है । भाव पक्ष एवं कला - पक्षइन दोनों ही दृष्टियों से यह काव्य श्रेष्ठ दूतकाव्यों की पंक्ति में रखा जाता है । कुल मिलाकर यह दूतकाव्य अपने रचना - वैशिष्ट्य हेतु दर्शनीय है ।
हंसदूतम् : इस दूतकाव्य की रचना श्री वेंकटेश कवि ने की है । इस काव्य में भी सन्देश सम्प्रेषण का माध्यम हंस ही रखा गया है । कथा इस प्रकार है कि जब सीताजी रावण द्वारा अपहृत कर ली गयीं, तब श्रीराम अपनी प्राणप्रिया सीता के वियोग में व्याकुल होने लगे । व्याकुलता अधिक होने पर वह अपने विरह-ताप को न संभाल पाकर एक हंस पक्षी को दूत बना उसी के द्वारा अपना विरह सन्देश सीता के पास भेजते हैं । अति लघु होने पर भी काव्य बहुत सुन्दर है । काव्य का रचना-सौष्ठव भी दर्शनीय ही है ।
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हंस दूतम् : इस दूतकाव्य के रचियता श्री भट्टवामन जी हैं। हंस ही इस काव्य में भी दूत का माध्यम है । संक्षेप में कथा इस प्रकार है कि एक शापग्रस्त यक्ष अपनी विरह-विधुरा यक्षिणी के पास एक हंस के
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2. बंग साहित्य परिचय : डी० सी० सेन पृ० ८५०; अप्रकाशित | २. औफ्रेक्ट के कैटालोगस कैटालोगरम् के प्रथम भाग पृष्ठ संख्या ७५३ पर उल्लिखित; अप्रकाशित ।
३. डा० जे० बी० चौधरी द्वारा सन् १८८८ में कलकत्ता से प्रकाशित ।
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