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भूमिका : ६३ धर्मशास्त्र, नाटक, काव्य, कोष आदि विविध विषयों पर अनेक ग्रन्थ रचे हैं। काव्य के नाम से हो स्पष्ट है कि इसमें यक्ष का उसकी प्रेयसी के साथ मिलन वर्णित है। कथावस्तु मेघदूत की कथावस्तु के आगे की है। इस काव्य में देवोत्थानी एकादशी के बाद यक्ष-यक्षिणी का मिलन होता है। बाद में उन दोनों की प्रणय लीलाएँ वर्णित हैं। काव्य मात्र ३५ श्लोकों का ही है। छन्द मन्दाक्रान्ता ही है। मेघदूत की कथा को पल्लवित कर कवि ने अपनी लोकोत्तर प्रतिभा का परिचय दिया है।
यज्ञोल्लास' : कृष्णमूर्ति द्वारा रचित यह दूतकाव्य, मेघदूत का परवर्ती काव्य साहित्य पर पड़े प्रभाव का परिचायक है।
रथाङ्गदूतम् : इस दूतकाव्य के काव्यकार का नाम श्री लक्ष्मीनारायण है । नाम के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि किसी रथ के अङ्ग को दूत निश्चित किया गया है। सूची-पत्र में इस दूतकाव्य का उल्लेख मिलता है तथा मैसूर से प्रकाशित भी हुआ है।
वकदूतम् : इस दूतकाव्य की रचना महामहोपाध्याय अजितनाथ न्यायरत्न ने की है। कुल २५० श्लोकों का यह दूतकाव्य रचा गया है, पर इनमें से २०० श्लोक ही वकदूत से सम्बन्धित हैं और शेष किसी अन्य से सम्बन्धित मालूम पड़ते हैं। काव्य में यह भी पता नहीं चल पाता है कि किसने किसको दूत बनाकर किसके पास भेजा है । अन्य सूत्रों से कुछ तथ्य प्रकट होते हैं, जिनके आधार पर विदित होता है कि काव्य में वक को दूत-सम्प्रेषण हेतु चुना गया है। इसी आधार पर काव्य का नामकरण भी हआ है। यह भी अनुमान लगता है कि किसी एक प्रिय-वियुक्ता मधुकरी ने अपने प्रियतम मधुकर के अन्वेषणार्थ वक को अपना दूत बनाकर एवं उसे अपना सन्देश देकर भेजा है। दूतकाव्यपरम्परा में यह काव्य बिल्कुल भिन्न ही है।
१. संस्कृत साहित्य का इतिहास : वाचस्पति गैरोला. पृ० ९०२; अप्रकाशित । २. मैसूर से प्रकाशित, अद्यार लाइब्रेरी के हस्तलिखित संस्कृत ग्रन्थ सूचीपत्र
के भाग २, संख्या १६ पर द्रष्टव्य । ३. प्राच्य-वाणी मन्दिर, कलकत्ता में पाण्डुलिपि ग्रन्थ-संग्रह, संख्या १४३ पर
द्रष्टव्य । काव्य की मूल प्रति लेखक के सुपुत्र श्री शैलेन्द्रनाथ भट्टाचार्य के पास सुरक्षित। ... ..
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