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भूमिका : ६१ की राह देखना । कारण यह है कि महान प्रयास से प्राप्त स्वप्नावस्था में बह मेरे गाढ़ालिंगन का आनन्द अनुभव कर रही होगी।" ____तदनन्तर यक्ष मेघ से मध्यरात्रि में सौधवातायन में बैठकर और अपनी जलबिन्दुओं से शीतल वायु द्वारा उसको जगाकर गर्जन रूप वचनों द्वारा अपना सन्देश सुनाने की प्रार्थना करता है। तत्पश्चात् वह अपना सन्देश मेघ से कहता है। अपना सन्देश बताने के पश्चात् यक्ष मेघ से अपनी प्रियतमा के प्रति-सन्देश को लाने की भी प्रार्थना करता है । मेघ के मौन भाव से अपने दूत कार्य के स्वीकृत कर लिये जाने की आशा कर अन्त में यक्ष उस मेघ को आशीर्वाद भी देता है कि मेरा सन्देश-कार्य पूर्ण कर वह स्वेच्छा पूर्वक इतस्ततः घूमता रहे और विद्युत् रूपी अपनी प्रेयसी से कभी भी उसका वियोग न हो। __इस प्रकार अपनी विश्वमोहिनी कथावस्तु के साथ यह दूतकाव्य विश्वविख्यात हो गया, साथ ही दूतकाव्य की परम्परा का सिरमौर भी बन बैठा है। इस दूतकाव्य के श्लोकों की कुल संख्या के बारे में मतवैभिन्न्य है । बलदेव उपाध्याय के मतानुसार कुल १११ श्लोकों का काव्य है, जबकि काशीनाथ जी कुल १२१ श्लोक मानते हैं । मल्लिनाथ ने श्लोकों की कुल संख्या ११५ बतायो है। इसी प्रकार मेकडोनल ने ११५ श्लोक कहे हैं और विल्सन ने इस काव्य की श्लोक संख्या ११६ दी है।
प्रकृति का सततस्थायी -शाश्वत् सौन्दर्य, जीवन की भोग-पिपासा एवं विरहपीड़ित मानव के अन्तस्तल में मूर्तरूप होने वाला विद्युत्प्रभ भावनालोक-यह सभी इस काव्य में साकार से हो उठे हैं। इसीलिए यह एक सच्चे कवि-कलाकार का अनूठा सृजन है और विशद् प्रतिभा का निष्कलुष प्रतिफलन । ___ मेघदूतम् : विक्रम कवि द्वारा रचित यह दूतकाव्य अभी तक अनुपलब्ध हो है, इसका मात्र उल्लेख ही उपलब्ध होता है। ____ मेघदूतम् : लक्ष्मणसिंहकृत यह दूतकाव्य केशवोत्सव स्मारक संग्रह की भूमिका के पृष्ठ १६ पर उल्लिखित है । १. कालिदास : प्रो० मिराशी, पृ० १०६ । २. जैनग्रन्थमाला के श्वेताम्बर कान्फ्रेन्स, पत्रिका, पृ० ३३२ पर द्रष्टव्य;
अप्रकाशित । ३. जैन सिद्धान्त भास्कर, (१९३६ ई०) भाग ३, किरण १, पृ० ३६;
अप्रकाशित ।
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