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________________ ५८: जैनमेघदूतम् वहीं कल्पनालोक में विचरण करते-करते अपनी प्रेयसी के प्यार में मग्न हो गया तथा ध्यान टूटने पर अपने एक मित्र को सामने देखकर वह उसी के द्वारा अपना सन्देश अपनी प्रिया चारुदेवी के पास भेजता है। __मार्ग-वर्णन भी आधुनिक है। उसका सन्देश अति शीघ्र पहुँचना है, अतः अपने मित्र से कहता है कि वह रेल से न जाकर वायुयान से जाकर उसकी प्रिया को उसका सन्देश दे। क्योंकि उसकी प्रिया तो परीक्षा उत्तीर्ण कर राँ वी से काश्मीर चली गयी थी। अतः राँची से काश्मीर तक का यात्रा-वर्णन काव्य में प्राप्त होता है। .. काव्य में नवीन-नवीन शब्दों का प्रयोग किया गया है। व्याकरण से सम्बन्धित कहीं भी त्रुटि नहीं मिलती है। नैतिक तथा आध्यात्मिक उपदेश भी काव्य में मिलते हैं । इस प्रकार समग्र काव्य ९७ सुन्दर श्लोकों में निबद्ध एक अत्याधुनिक शृाङ्गारिक दूतकाव्य है। काव्य में प्रायः मन्दाक्रान्ता एवम् अर्थान्तरन्यास छन्दों का ही प्रयोग मिलता है । मुद्गरदूतम्' : पं० रामगोपाल शास्त्री द्वारा रचित यह दूतकाव्य स्वतन्त्र कथा पर आधारित एक अति मनोरंजक दूतकाव्य है। कवि ने काव्य में मुद्गर अर्थात् गदा को सन्देश दिया है । समाज में फैली तमाम तरह की भ्रष्टताओं तथा बुराइयों को अपने प्रहार से ठोंककर ठीक कर देने की कथा को सन्देश का रूप दिया गया है। काव्य मात्र व्यंग्यपूर्ण है। मेघदूतम्' : शृङ्गार रस के वातावरण में ही परिपुष्ट महाकवि कालिदास द्वारा विरचित इस दूतकाव्य में सन्देश-सम्प्रेषण हेतु धूम, तेज, जल एवं वायु के संयोग से निर्मित मेघ' को चुना गया है। काव्य की कथा इस प्रकार से वर्णित है__ कैलाश पर्वत पर अवस्थित अलकापुरी के स्वामी धनपति कुबेर की सेवा में एक यक्ष नियुक्त था । सेवाकार्य में कुछ प्रमाद कर देने के कारण वह यक्ष धनपति कुबेर द्वारा पत्नी से वियुक्त होकर एक वर्ष हेतु देशनिर्वासन का दण्ड प्राप्त करता है। तब वह यक्ष अलकापुरी से निर्वासित हो घूमता-घूमता जनकात्मजा सीता के स्नान से पवित्र जलवाले रामगिरि नामक पर्वत पर पहुँचता है और वहीं रहने लगता है। उस पर्वत पर यक्ष किसी प्रकार आठ माह तो व्यतीत कर लेता है, परन्तु आषाढ मास के १. संस्कृत के सन्देशकाव्य : रामकुमार आचार्य, परिशिष्ट २; अप्रकाशित । २. प्रकाशित । ३. धूमज्योतिः सलिलमरुतां सन्निपातः क्व मेघः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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