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________________ भूमिका : ५७ कालिदास का अनुकरण करने पर भी कवि ने अपनी उत्कृष्ट मौलिक प्रतिभा का स्थान-स्थान पर काव्य में परिचय दिया है । दक्षिण भारत के संस्कृत सन्देशकाव्यों में इस काव्य का साहित्यिक तथा ऐतिहासिक दोनों ही दृष्टि से प्रथम स्थान है। मानससन्देश' : अपने अन्तःमन को दूत बनाकर इस दूतकाव्य में सन्देश-सम्प्रेषण सम्पादित हुआ है। काव्य के काव्यकार श्री वीर राघवाचार्य जी हैं। जिनका काल सन् १८५५ से १९२० तक का है। यह एक आधुनिक दुतकाव्य के रूप में देखा जाता है। ___ मानससन्देश : सन् १८५९ से १९१९ ई० के बीच में इस दूतकाव्य की श्री लक्ष्मण सूरि जी ने रचना की है। इस दूतकाव्य के रचनाकार पचयप्पा कालेज, मद्रास में संस्कृत के प्रोफेसर थे। इनके अनेक ग्रन्थ मद्रास से मुद्रित भी हो चुके हैं। मारुत्सन्देश : किसी एक अज्ञातनाम कवि द्वारा रचित इस दूतकाव्य में मारुत् अर्थात् वायु द्वारा सन्देश-सम्प्रेषण सम्पन्न करवाया गया है । काव्य प्रकाशित नहीं हो पाया है। मित्रदूतम् : दूतकाव्य-परम्परा के सबसे आधुनिक दूतकाव्य के रूप में यह मित्रदूतम् दूतकाव्य प्राप्त होता है । इस नवीन दूतकाव्य के रचनाकार राँची विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो० दिनेशचन्द्र पाण्डेय हैं। मेघदूत से ही प्रेरणा लेकर इस नवीन दूतकाव्य की रचना हुई है। राँची विश्वविद्यालय का एक छात्र, अपनी एक सहपाठिनी चारुदेवी के प्रेमपाश में फंस जाने के कारण अपने अध्ययन से विमुख हो गया । जिसके कारण वह छात्र विश्वविद्यालय से बहिष्कृत कर दिया गया। वह छात्र निष्कासित हो जाने पर अपने छात्रावास के निकट ही एक मन्दिर में रहने लगा। उसका अपनी प्रिया से वियोग हो चुका था। वह छात्र अपने दिल को बहलाने के लिए उसी स्थान पर जाकर भटकता रहता था, जहां कभी पहले एक साथ वे दोनों प्यार में भटका करते थे। एक बार वह छात्र १. ओरियण्टल हस्तलिखित पुस्तकालय, मद्रास के ग्रन्थ-संख्या २९६४ पर द्रष्टव्य; अप्रकाशित । २. संस्कृत के सन्देशकाव्य : रामकुमार आचार्य, परिशिष्ट २; अप्रकाशित । ३. वही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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