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________________ ५६: जैनमेघदूतम् काव्य-परम्परा की अत्याधुनिक कृति है। काव्य में १११ मन्दाक्रान्ता श्लोक हैं। इस दूतकाव्य में एक अनुसन्धाता छात्र ने इंग्लैण्ड में अपनी प्रेयसी के पास मयूख (रवि-किरण) को दूत के रूप में प्रेषित किया है । इस दूतकाव्य में पटना से इंग्लैण्ड तक के महत्त्वपूर्ण स्थलों का वर्णन हुआ है। मयूरसन्देश :श्री रंगाचार्य जी द्वारा यह दूतकाव्य रचा गया है । इस काव्य में दूत-सम्प्रेषण का माध्यम मयूर को बनाया गया है । राम या कृष्ण-कथा पर आधारित न होकर काव्य की कथा स्वतन्त्र है। मयूरसन्देश : इस द्वितीय मयूरसन्देश नामक दूतकाव्य के रचनाकार श्रीनिवासाचार्य जी हैं। एक स्वतन्त्र कथा को लेकर इस काव्य की भी रचना की गयी है। काव्य बहुत ही सुन्दर है। मयूरसन्देश' : किसी अज्ञात कवि द्वारा रचित इस दूतकाव्य का ग्रन्थभण्डारों की सूचियों में मात्र उल्लेख ही प्राप्त होता है । एक स्वतन्त्र कथा पर ही यह दूतकाव्य भी आधारित है। मयूरसन्देश' : उदय कवि द्वारा रचित यह एक महत्त्वपूर्ण दूतकाव्य है। मेघदूत के समान ही यह काव्य पूर्व तथा उत्तर दो भागों मे विभक्त है। १०७ एवं ९२ कुल दोनों भागों में श्लोक हैं। प्रथम श्लोक मालिनी तथा शेष सभी मन्दाक्रान्ता छन्द पर आधारित हैं। मालबार के राजा श्रीकण्ठ का राजकुमार अपनी रानी मारचेमन्तिका के साथ प्रासाद की छत पर विहार कर रहा था। कोई एक विद्याधर भूल से उन दोनों को शिव-पार्वती समझ बैठा, जिससे राजकुमार एवं उसकी पत्नी दोनों ही विद्याधर की उस भूल पर हँस पड़े। इस पर कुपित होकर उस विद्याधर ने उन दोनों को एक मास के लिए वियुक्त रहने का शाप दे दिया। इस प्रकार एक मास का वियोग उस दम्पति को व्याकुल करने लगा। तभी वह राजकुमार एक मयूर को देखता है और उसको दूत बनाकर अपनी प्रेयसी के पास उसके द्वारा अपना सन्देश भेजता है। १. अद्यार पुस्तकालय के हस्तलिखित ग्रन्थों के सूचीपत्र, भाग २, संख्या ८ द्रष्टव्य; अप्रकाशित । २. मद्रास से प्रकाशित । ३. ओरियण्टल लाइब्रेरी, मद्रास के हस्तलिखित संस्कृत ग्रन्थों की सूचीपत्र के भाग ४ में ग्रन्थ-संख्या ४२९८ पर द्रष्टव्य; अप्रकाशित। ४. डॉ० सी० कुन्हन राजा द्वारा सम्पादित तथा ओ० बी० ए० पूना से सन् १९४४ में प्रकाशित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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