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भूमिका : ५५ काव्य शिखरिणी छन्द में निबद्ध है । यह दूतकाव्य, सन्देश पाने वाले एवम् भेजने वाली की उक्ति प्रोक्ति, रूप में प्राप्त होता है । विषय-विभाग हेतु परिच्छेद शब्द का प्रयोग मिलता है । काव्य में शार्दूलविक्रीडित छन्द भी प्राप्त है । कवि ने काव्य की रचना भागवत् तथा पुराणों की कथा के आधार पर की है। इस प्रकार प्रस्तुत दूतकाव्य भक्ति रस पर आधारित एक सफल दूतकाव्य है ।
मनोदूतम्' : कृष्णकथा पर आधारित यह दूतकाव्य श्री तेलङ्ग ब्रजनाथ द्वारा रचित है। इसका रचनाकाल १७ वीं शताब्दी का है । मन को ही इस दूतकाव्य में भी दूत रूप में निरूपित किया गया है । यह दूतकाव्य कृष्ण-कथा पर ही आधारित है । जब कौरव-सभा में दुःशासन द्वारा द्रोपदी का चीर हरण किया जा रहा था, तब उस समय द्रोपदी ने अपनी लाज बचाने हेतु श्रीकृष्ण भगवान् का स्मरण कर अपने मन को ही दूत रूप में निश्चित कर उसी के माध्यम से अपनी विनती श्रीकृष्ण के पास भेजा । कथा प्रसंग सरसता एवं कलात्मकता के साथ वर्णित है |
मनोवृतम्: किसी अज्ञातनाम कवि द्वारा यह दूतकाव्य रचा गया है । सामान्यतः इसमें दार्शनिक तत्त्व अधिक समाविष्ट हैं, क्योंकि काव्य में आत्मा और जीव का सम्बन्ध दिखलाया गया है ।
मनोदूतम् : यह दूतकाव्य भट्ट हरिहर के हृदयदूतम् के साथ प्रकाशित हो चुका है । इस काव्य की रचना इन्दिरेश भट्ट ने की है ।
मनोदूतम् : विक्रम संवत् १९६३ में श्री भगवद्दत्त नामक कवि ने मात्र १६-१७ वर्ष की लघुतर वय में ही इस दूतकाव्य की रचना की है । इसमें ११४ श्लोक हैं । यह काव्य कवि की कवित्वशक्ति व विस्मयकारक मेधा का स्पष्ट परिचायक है ।
मयूखदूतम् " : इस दूतकाव्य के रचयिता मारवाड़ी कालेज, राँची के संस्कृत के विभागाध्यक्ष प्रो० रामाशीष पाण्डेय जी हैं । यह कृति भी दूत
१. निर्णय सागर प्रेस, बम्बई से काव्यमाला, त्रयोदश पुष्प में प्रकाशित ।
२. रघुनाथ मन्दिर पुस्तकालय, काश्मीर के हस्तलिखित ग्रन्थों का सूची- पत्र, पृ० १७० और २८७; अप्रकाशित ।
३. चुन्नीलाल बुकसेलर, बड़ा मन्दिर, भूलेश्वर, बम्बई से प्रकाशित ।
४. जैन सिद्धान्त भास्कर, (१९३६ ई०) भाग ३, किरण १ १० ३६; अप्रकाशित ।
५. श्याम प्रकाशन, नालन्दा (बिहार) से ई० १९७४ में प्रकाशित |
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