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________________ ५४ : जैनमेघदूतम् काव्य अप्रकाशित है तथा इसके सम्बन्ध में अन्य कोई सूचना नहीं मिलती है। भंगसन्देश' : इस दूतकाव्य की की श्री पेरुम्बुदूर के प्रतिवादि भयंकर वेंकटाचार्य की धर्मपत्नी श्रीमती त्रिवेणी जी हैं। काव्य अप्रकाशित ही है। इसका रचनाकाल संवत् १८४० से १८८३ के मध्य का है। ___ मधुकरदतम् २ : चक्रवति श्री राजगोपाल द्वारा विरचित यह दूतकाव्य स्वतन्त्र कथा पर आधारित है। कवि सेण्ट्रल कालेज, बंगलौर में सन् १९२२ से १९३४ तक संस्कृत-विभागाध्यक्ष रहा है। मधुरोष्ठसन्देश : इस दूतकाव्य का हस्तलिखित ग्रन्थ-सूची में मात्र उल्लेख ही प्राप्त होता है। काव्य के काव्यकार का नाम भी अज्ञात है। पर इसके शीर्षक से स्पष्ट होता है कि इसमें नायक-नायिका के प्रति दूतसम्प्रेषण का माध्यम कोई सुन्दर मधुर ओष्ठ रहा है। . मनोदूतम् : इस दूतकाव्य के रचनाकार श्री विष्णुदास जी हैं । कवि ने वसन्ततिलका छन्द में इस काव्य की रचना की है। इस दूतकाव्य का दूत एवं भेजा जाने वाला सन्देश दोनों ही पार्थिव न होकर अपार्थिव हैं। इसमें विष्णुदास नामक एक व्यक्ति ने अपने द्वारा किये गये पापों एवं उनके परिणामस्वरूप होने वाले भावी सैकड़ों दुःखों का विचार कर अपने मन को ही दूत बना लिया और फिर उसे ही भगवान् के पास भेजा है। काव्य बड़ा ही विचित्र है। इस काव्य में कुल एक सौ एक श्लोक हैं । कवि ने सरलता एवम् अति सरसतापूर्वक काव्य का निर्माण किया है । शृाङ्गारिक पक्ष भी अति सुन्दर है। ___मनोदूतम्" : यह दूतकाव्य श्रीराम शर्मा द्वारा रचित है । सम्पूर्ण १. संस्कृत के सन्देशकाव्य : रामकुमार आचार्य, परिशिष्ट २; अप्रकाशित । २. संस्कृत के सन्देशकाव्य : रामकुमार आचार्य, परिशिष्ट २; अप्रकाशित । ३. ओरियण्टल लाइब्रेरी, मैसूर का संस्कृत हस्तलिखित ग्रन्थों का सूचोपत्र, . ग्रन्थसंख्या २५१ पर द्रष्टव्य; अप्रकाशित । ४. संस्कृत-साहित्य परिषद्, कलकत्ता द्वारा सन् १९३७ में प्रकाशित तथा श्रीचिन्ताहरण चक्रवर्ती द्वारा सम्पादित । ५. बंगीय साहित्य परिषद्, कललत्ता में ग्रन्थ-संख्या १२८२ के रूप में पाण्डु लिपि उपलब्ध तथा "हृदय दूत" के साथ प्रकाशित, प्रकाशक-चुन्नीलाल बुकसेलर, बड़ामन्दिर, भूलेश्वर, बम्बई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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