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'जैनमेघदूत में रस विमर्श' के अन्तर्गत साहित्य शास्त्र में प्रतिपादित रस के महत्त्व को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से रस का सामान्य परिचय प्रस्तुत किया गया है । ग्रन्थ में विप्रलम्भ शृंगार के साथ ही शान्त रस का भी चित्रण हुआ है। प्राधान्य शान्त रस का है। कालिदास कृत मेघदूत एवं जैनमेघदूत सम्बन्धी रस विचार को समीक्षण के निष्कर्ष पर परखने का प्रयास किया गया है।
'ध्वनि विमर्श' में ध्वनि का सामान्य स्वरूप एवं उसका महत्त्व प्रतिपादित करते हुए जैनमेघदूत विषयक ध्वनि प्रयोगों को विवेचित किया गया है । साथ ही काव्यद्वय के ध्वनि योजना की समीक्षा भी की गयी है। __'अलंकार विमर्श' में अलंकार के सामान्य स्वरूप एवं उसके महत्त्व को प्रतिपादित किया गया है । ग्रन्थ विषयक अलंकार विचार से स्पष्ट होता है कि उपमा, रूपक, अर्थान्तरन्यास, श्लेष, उदात्त आदि अलंकारों का इसमें विशेष रूप से प्रयोग हुमा है। मेघदूत में प्रयुक्त अलङ्कारों के साथ इस ग्रंथ में प्ररक्त अलंकारों की समीक्षा भी की गई है।
जैनमेघदूत में दोष-विमर्श में दोष का सामान्य स्वरूप एवं साहित्य शास्त्र में उसका महत्त्व प्रतिपादित किया गया है तथा इसमें स्थित किञ्चित् काव्य दोषों पर विचार किया गया है। साथ ही कालिदास के 'मेघदूत' में विद्यमान काव्य दोषों के साथ इसके दोषों को समीक्षा की गई है।
'गुण विमर्श' में गुण के सामान्य स्वरूप एवं साहित्य शास्त्र में उसका महत्त्व संक्षेप में प्रतिपादित है । जैनमेघदूत में सन्निहित गुण का विवेचन करने से यह स्पष्ट होता है कि इसमें किंचित् ओजगुण के सम्मिलित तत्त्वों से युक्त माधुर्य गुण विद्यमान हैं । 'मेघदूत' के गुण विमर्श के साथ ग्रंथ में गुण-विचार की समीक्षा भी प्रस्तुत की गयी है। इस भूमिका के अन्त में उपसंहार के रूप में अध्ययन का निष्कर्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है ।
इसके द्वितीय भाग के रूप में जैनमेघदूतम् का मूल, संस्कृत वृत्ति व हिन्दी अनुवाद प्रकाशित है।
अन्त में सहायक ग्रन्थों की सूची दी गई है।
प्रस्तुत ग्रंथ में मैंने सम्पूर्ण उपलब्ध सामग्री का विवेकपूर्ण एवं आलोचनात्मक उपयोग किया है । जिन विद्वानों के विषय से सम्बन्धित ग्रन्थ उपलब्ध हो सके हैं, उनसे भी लाभान्वित होने का प्रयत्न किया है तथा यथास्थान पर उनका संदर्भ भी सूचित कर दिया है। ____ इस प्रयास में मैं कहाँ तक सफल हो सका हूँ, यह सुधीवर्ग पर ही आश्रित है । परन्तु इस प्रयास में जिन साहित्य-मर्मज्ञ विद्वानों एवं महानुभावों का सहयोग
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