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सम्पादक एवं भूमिका लेखक का स्वकथ्य
इस ग्रन्थ में भूमिका के रूप में प्रस्तुत भाग वस्तुतः काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पी० एच० डी० की उपाधि हेतु प्रस्तुत 'महाकवि कालिदास कृत मेघदूत और जैनकवि मेरुतुङ्गकृत जैनमेघदूत का साहित्यिक अध्ययन' शीर्षक मेरे शोध प्रबन्ध का संक्षिप्त एवं संशोधित रूप है। मैंने कालिदास और उनके मेघदूत से सम्बन्धित आवश्यक सामग्री ही प्रस्तुत ग्रन्थ की भूमिका के रूप में समाविष्ट किया है । इस भूमिका के साथ ही जैनमेघदूतम् मूल, महीमेरु गणि कृत बालावबोधवृत्ति एवं हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित है। इस सम्बन्ध में पूर्ण विवरण प्रकाशकीय में उपलब्ध है अतः पुनः उसका उल्लेख कर पुनरुक्ति नहीं करना चाहता हूँ । भूमिका सहित ग्रन्थ योजना इस प्रकार है
आरम्भ में मैंने दूतकाव्य के उद्भव एवं विकास पर विचार किया है । इसमें दूतशब्द की व्युत्पत्ति तथा दूतकाव्य के उद्भव का विचार करते हुए ऋग्वेद, वाल्मीकीय रामायण, महाभारत, भागवत, बौद्धजातक एवं पउमचरिय आदि प्राचीन ग्रन्थों में उसका प्रारम्भिक स्रोत बतलाया है । साथ ही भाववैभिन्य के आधार पर दूतकाव्यों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है-(१) शृंगार प्रधान (२) अध्यात्म प्रधान । शृंगार प्रधान दूतकाव्यों में कालिदासीय मेघदूत सदृश दूत काव्यों एवं अध्यात्म प्रधान दूतकाव्यों में जैनमेघदूत सदृश अध्यात्मपरक दूतकाव्यों का उल्लेख हुआ है। ___ इसके पश्चात् अद्यावधि उपलब्ध एवं ज्ञात जैन एवं जैनेतर कवियों द्वारा रचित समस्त संस्कृत दूतकाव्यों का संक्षिप्त दिग्दर्शन प्रस्तुत किया है। . 'कवि परिचय' शीर्षक के अन्तर्गत जैनमेघदूत काव्य के रचयिता आचार्य मेरुतुङ्ग के स्थितिकाल, उनके गच्छ निर्धारण आदि को स्पष्ट कर उनके जीवन: चरित एवं उनसे सम्बन्धित अनेक प्रभावी अवदानों के साथ उनके समस्त ग्रन्थों पर विचार किया गया है । ___ 'काव्य परिचय' शीर्षक में मेरुतुङ्ग के जैनमेघदूत का पूर्व परिचय प्रस्तुत कर सर्ग क्रमानुसार कथा वर्णित की गई है तथा कालिदासीय मेघदूत के परिप्रेक्ष्य में जैनमेघदूत काव्य की कथाशिल्प सम्बन्धी विशेषताओं का स्पष्टीकरण करने के लिए दोनों दुतकाव्यों की कथाविषयक विभिन्नताओं का विवेचन किया गया है।
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