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५२ : जेनमेघदूतम् पत्नी के नाम से दिल्ली मन्त्रणालय में भेज देता है। उसके इस पत्र से पुनर्वासमन्त्री को जब उसकी स्थिति मालूम होती है तो वे प्रवासी की पत्नी का पता लगाने को तत्पर हो जाते हैं। तभी दोनों देशों के लोगों का अपने-अपने देश में प्रत्यावर्तन होता है। प्रवासी तथा उसकी पत्नी अपने भारत देश में रहना स्वीकार करते हैं, इसीलिए भारत सरकार उसकी पत्नी को काशी पहुँचा देती है । अपनी पत्नी को काशी में ही पाकर वह प्रवासी विरह के क्लेश को भूल कर हर्ष का अनुभव करता है। . काव्य के पूर्व-निःश्वास में ८० तथा उत्तर-निःश्वास में ३४ श्लोक हैं । काव्य अतीव रोचक है।।
. मेघसन्देशविमर्श' : कृष्णमाचार्य द्वारा यह दूतकाव्य रचा गया है। कालिदास के मेघदूत का परवर्ती काव्य-साहित्य पर कितना प्रभाव पड़ा, प्रस्तुत काव्य इस प्रभाव का स्पष्ट परिचायक है।
बुद्धिसन्देश : यह एक आधुनिक अप्रकाशित रचना है। इसके रचयिता श्री सुब्रह्मण्यम् सूरि जी हैं। इस दूतकाव्य में बुद्धि द्वारा सन्देश सम्प्रेषित किया गया है।
भक्तिदूतम् : मात्र थ्राङ्गारिक काव्य के रूप में यह काव्य रचा गया है। काव्य के रचनाकार श्री कालीचरण जी हैं। काव्य का कथानक भी राम या कृष्ण भक्ति पर आधारित न होकर स्वयं काव्यकार के ही जीवन से सम्बन्धित है। कवि कालीचरण की प्रियतमा मुक्ति अपने प्रियतम से विमुक्त थी। इसीलिए मुक्ति के प्रति कवि ने भक्ति-दूती मुख से अपना सन्देश भेजा है। काव्य में कुल २३ श्लोक हैं। इस प्रकार अतिलघु होने पर भी काव्य बहुत सुन्दर है।
भ्रमरदूतम् : राम-भक्ति पर आधारित यह दूतकाव्य श्री रुद्रन्याय वाचस्पति द्वारा रचित है । दौत्य-कर्म एक भ्रमर द्वारा सम्पादित किया गया है। अभिज्ञान लेकर हनुमान जी द्वारा वापस आकर श्रीराम को सीता का सन्देश देने पर, श्रीराम सीता के वियोग में व्याकुल होकर पर्वत-कुञ्ज में भ्रमण कर रहे थे, वहीं उनकी दृष्टि एक भ्रमर पर पड़ती १. संस्कृत साहित्य का इतिहास : वाचस्पति गैरोला, पृ० ९०२। २. संस्कृत साहित्य का इतिहास : कृष्णमाचारियर, पृ० ३८०, पैरा ३५२ । ३. श्री आर० एल० मित्र के संस्कृत के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची के भाग
३, संख्या १०५१, पृ० २७ पर द्रष्टव्य; अप्रकाशित । ४. डॉ० यतीन्द्र विमल चौधरी द्वारा सन् १९४० में कलकत्ता से प्रकाशित ।
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