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________________ - भूमिका : ५५ के दिनों को अति कष्ट से व्यतीत करने लगता है। उसे दूर देश में स्थित अपनी पत्नी की चिन्ता सताती है। चिन्ता से व्यथित वह भगवान् विश्वनाथ के मन्दिर में आता है और उनसे अपने कष्टों के निवारणार्थ विनती करता है। वहाँ वह मण्डप में भक्तों के साथ श्रीरामचन्द्र की कथा सुनने लगता है। उस कथा-प्रसङ्ग में जब राम द्वारा सीता के पास हनुमान से भेजे गये सन्देश की बात वह सुनता है, तो उसे भी अपनी पत्नी का स्मरण हो आता है। वह उसके स्मरण में ध्यानमग्न हो जाता है । आँखें खुलने पर वह अपने सामने एक प्लवङ्ग (वानर) को देखता है। उसने बड़े विश्वास से उस प्लवङ्ग का सत्कार किया तथा उससे अपनी प्रिया के पास सन्देश पहुँचाने की प्रार्थना की। इसके पश्चात् वह प्लवङ्ग से उसके गन्तव्य-मार्ग को भी बताता है। प्लवङ्ग को ज्ञानवापी से उछलकर वाराणसी कैण्ट स्टेशन जाना है। वहाँ से सीधे पश्चिम न जाकर विन्ध्याचल निवासिनी दुर्गा देवी के दर्शनार्थ मुगलसराय होते हुए. उसे मिर्जापुर जाना है। वहाँ दर्शन कर प्रयाग, आगरा तथा मथुरा होते हुए उसे दिल्ली पहुँचना है। दिल्ली में उसे प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी का दर्शन कर और स्वीश (स्वीटजरलैण्ड) दूतावास से पाकिस्तान जाने की सहायता प्राप्त कर अम्बाला, लुधियाना, भाखरा बाँध, जालन्धर, अमृतसर, लाहौर, रावलपिण्डी और पेशावर होते हुए जावरोद पहुँचना है। वहाँ पहुँचकर उसे उसकी पत्नी का पता लगाना है। द्वितीय-निःश्वास के प्रारम्भ में प्रवासी अपनी पत्नी के विरही रूप तथा उसकी मनोदशा का मार्मिक वर्णन करता है। तत्पश्चात् वह प्लवङ्ग से अपनी प्रिया को अपना मार्मिक सन्देश सुनाने का अनुरोध करता है। वह प्लवङ्ग उस प्रवासी की प्रार्थना स्वीकार कर उसकी पत्नी का पता लगाने के लिए पाकिस्तान जाने को तैयार हो जाता है। तभी रामकथा समाप्त हो जाती है और भक्तों के उठने से वह प्लवङ्ग वहाँ से भाग जाता है। भक्तों की जयकार सुन और सामने प्लवङ्ग को न देख उस प्रवासी का ध्यान टूटता है । वह अत्यन्त खिन्न मन से अपने स्थान पर वापस आ जाता है। उसकी विकलता बढ़ती ही जाती है । अतः अब वह अपने मन के भावों को संस्कृत-पद्यों में निबद्ध कर उन्हें अपनी १. युद्ध काल में स्वीश दूतावास ही दोनों देशों के लोगों के प्रत्यावर्तन (आनेजाने) का कार्य करता था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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