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५० : जैनमेघदूतम् होता है, फिर भी काव्य अत्युत्तम है। पिक को ही दूत नियुक्त कर इस काव्य को भी रचना की गयी है।
पिकसन्देश' : श्री दधीचि ब्रह्मदेव शर्मा द्वारा यह दूतकाव्य रचा गया है। यह काव्य कुछ राष्ट्रीय भावना से प्रेरित प्रतीत होता है । इसमें तत्कालीन भारत की शोचनीय अवस्था का वर्णन किया गया है । काव्य का नामकरण सन्देश-हारक के आधार पर न होकर सन्देश सम्प्रेषक के आधार पर किया गया है। काव्य में एक कोयल ने, कवि के पास, एक मधुमक्खो को भारत की तत्कालीन विचारणीय दशा का सन्देश देकर भेजा है । अपने रूप में यह दूतकाव्य अद्भुत ही है।
पिकसन्देश : इस काव्य के रचनाकार श्री रंगनाथाचार्य जी हैं । इस काव्य में भी एक पिक को दूत के रूप में नियुक्त कर उसके द्वारा सन्देश कथन किया गया है। काव्य प्रकाशित है।
पिकसन्देश : तिरुपति निवासी श्री निवासाचार्य के पुत्र कोच नरसिंहाचार्य इस दूतकाव्य के रचयिता हैं। यह दूतकाव्य भी प्रकाशित हो चुका है।
प्लवङ्गतम् : संस्कृत दूतकाव्य-परम्परा का यह अत्याधुनिक दूतकाव्य है । इसके रचयिता प्रो० वनेश्वर पाठक हैं, जो राँची विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर अधिष्ठित हैं। इस काव्य में एक प्लवङ्ग (बन्दर) के द्वारा दौत्य-कर्म सम्पादित किया गया है। इसमें दो निःश्वास हैं-पूर्वनिःश्वास और उत्तर-निःश्वास । पूर्व-निःश्वास की कथा इस प्रकार है
कोई भारतीय व्यक्ति नौकरी करने के लिए अपनी पत्नी के साथ पेशावर (सम्प्रति पाकिस्तान में स्थित) जाता है। वहाँ वह एक सरकारी नौकरी करने लगता है। पेशावर नगर के निकट ही जावरोद गांव में उसका छोटा सा सुन्दर भवन था, जिसकी दीवारों पर राम-नाम अंकित था। वह व्यक्ति श्रीराम का भक्त था। किसी सरकारी कार्यवश वह काशी (वाराणसी) आता है और किसी धर्मशाला में रहकर अपना कार्य करने लगता है। इसी बीच भारत-पाकिस्तान का युद्ध छिड़ जाता है। ऐसी स्थिति में वह प्रवासी पाकिस्तान लौटने में असमर्थ होकर पत्नी-वियोग १. झालरापाटन राजकीय सरस्वती भवन द्वारा प्रकाशित । २. श्रीरंगम् से प्रकाशित । ३. तिरुपति से प्रकाशित । ४. सुबोध ग्रन्थमाला कार्यालय, रांची द्वारा प्रकाशित।
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