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________________ ४८ : जैनमेघदूतम् दृष्ट्वा देवं भुवनविजये लक्ष्मणं क्षोणिपालं । सद्यः कुसुमधनुषः संविधेयीबभूव ॥ बाला गन्धर्व - नगरी से राजा के वापस चले जाने पर वह कन्या विरह से व्याकुल हो उठी । वसन्त काल में दक्षिण दिशा से बहने वाले पवन (वायु) को अपना सन्देशवाहक बनाकर वह लक्ष्मणसेन के पास अपना विरहसन्देश भेजती है । काव्य की मात्र इतनी ही कथा है । इस दूतकाव्य में एक सौ (१००) श्लोक हैं । विप्रलम्भ-शृङ्गार का पूर्ण परिपाक इसमें प्राप्त होता है । पवनदूतम्' : इस दूतकाव्य की रचना श्री जी० बी० पद्मनाभ ने की है। इसमें भी पतन को ही दूत रूप में निश्चित किया गया है । पादपदम् : एक स्वतन्त्र कथा पर आधारित यह दूतकाव्य पूर्णतया एक श्राङ्गारिक दूतकाव्य है । काव्य के रचनाकार श्री गोपेन्द्रनाथ गोस्वामी जी हैं । नाम से ही प्रतीत होता है कि इस काव्य में पादप अर्थात् वृक्ष को दूत बनाकर सन्देश सम्प्रेषण किया गया है । काव्य की कथा कुछ इसप्रकार से मिलती है कि विष्णुप्रिया नाम्नी एक नायिका अपने प्रिय नायक से किसी कारणवश वियुक्त हो जाती है । अपने प्रिय के वियोग में वह नायिका विरह व्यथा से अत्यन्त सन्तप्त होकर अपने घर के आंगन में लगे एक निम्बतरु को अपना दूत बनाकर उसके द्वारा अपने प्रियतम के पास अपना सन्देश भेजती है । यह दूतकाव्य कुल ३४ श्लोकों में निबद्ध है । इसके रचना-काल के विषय में कोई भी सही जानकारी नहीं प्राप्त है । पान्यदूतम् : कृष्ण कथा पर आधारित यह सन्देशकाव्य श्री भोलानाथ जी द्वारा रचा गया है । काव्य में दौत्य - कर्म एक पान्थ अर्थात् पथिक • (यात्री) द्वारा सम्पादित करवाया गया है । काव्य की कथा इस प्रकार है कि कोई एक गोपबाला यमुना तट पर गयी, पर हमेशा की भाँति उस दिन वह वहाँ श्रीकृष्ण को न पा सकी, क्योंकि श्रीकृष्ण मथुरा चले गये थे । इस प्रकार श्रीकृष्ण के विरह में वह गोपी मूच्छित हो जाती है । कुछ समय १. संस्कृत साहित्य का इतिहास : कृष्णमाचारियर, पृ० २७५ । २. नवद्वीप कान्ति प्रेस, नवद्वीप से सन् १९३५ में प्रकाशित | ३. हस्तलिखित प्रति इण्डिया आफिस पुस्तकालय, लन्दन में संख्या २८९० के रूप में सुरक्षित तथा प्राच्य-वाणी पत्रिका, कलकत्ता, भाग ६ में सन् १९४९ में मूलमात्र प्रकाशित | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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