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भूमिका : ४७ प्रस्तुत कथा-प्रसंग श्रीमद्भागवत' से लिया गया है। काव्य में कुल ४६ श्लोक हैं । सभी श्लोक मन्दाक्रान्ता छन्द में हैं, मात्र अन्तिम श्लोक शार्दूलविक्रीडित छन्द में है । यद्यपि काव्य बहुत छोटा है, फिर भी कवि की कल्पना कहीं-कहीं बहुत ही मुखरित हो उठी है। काव्य का मुख्य रस विप्रलम्भ शृङ्गार है। काव्य में माधुर्यगुण तथा वैदर्भी रीति का प्रयोग हुआ है । कवि ने दार्शनिक प्रसंगों को लेकर काव्य को और भी महत्त्वपूर्ण बना दिया है। इस प्रकार साहित्य, भक्ति तथा दर्शन इन तीनों धाराओं का यह काव्य एक अपूर्व संगम है।
पदाकदूतम् . कवि भोलानाथ ने इस दूतकाव्य की रचना की है। पूर्व के दूतकाव्य की भांति इस दूतकाव्य में भी पदचिह्न को ही, दूत के रूप में नियुक्त किया गया है। काव्य अभी तक अप्रकाशित ही है। मात्र सूचीपत्र में उल्लिखित है।
. पवनदूतम् : पवनदूत एक अति सुन्दर दूतकाव्य है। इसके रचयिता श्री धोयी कवि हैं। धोयी कवि राजा लक्ष्मणसेन के राजकवि थे। लक्ष्मणसेन के काल-
निर्धारण के आधार पर ही धोयी कवि का काल-ज्ञान सम्भव है। ईसवी की १२ वीं शताब्दी राजा लक्ष्मणसेन का समय है । अतः यही समय इस काव्यकार का भी होगा। कवि के नाम में मत-वैभिन्न्य है-जैसे धूमी, धोयी, धोई धोयिक आदि । इनकी रचनओं में मात्र प्रस्तुत काव्य ही प्राप्त होता है।
कवि ने काव्य में एक दक्षिण भारतीय गन्धर्व-कन्या द्वारा राजा लक्ष्मणसेन के पास पवन को दूत बनाकर उसके द्वारा सन्देश-सम्प्रेषण की कथा वर्णित की है। संक्षेप में कथा इस प्रकार है। कनकनगरी नामक एक गन्धर्व-नगरी में कुवलयवती नाम्नी एक गन्धर्वकन्या थी। दक्षिणदिग्विजय हेतु गौड़नरेश लक्ष्मणसेन उस नगरी में आये । उसी समय से वह गन्धर्वकन्या राजा लक्ष्मणसेन को देखकर उन पर अनुरक्त हो गयी
१. श्रीमद्भागवत, १०/३०/२४-२५-२६ । २. इण्डिया आफिस लाइब्रेरी, केटलाग, भाग ७, ग्रन्थसंख्या १४६७;
अप्रकाशित। ३. संस्कृत-साहित्य-परिषद्, कलकत्ता द्वारा सन् १९२६ में प्रकाशित एवम् श्री
चिन्ताहरण चक्रवर्ती द्वारा सम्पादित ।
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