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भूमिका : ५ देवदूतम्' : इस दूतकाव्य के कर्ता के विषय में किंचिदपि जानकारी नहीं है। परन्तु यह काव्य हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय से प्रकाशित आधुनिक दूतकाव्यों में उल्लिखित है।
नलचम्पू : अन्य दूतकाव्यों की भाँति इस दूतकाव्य की कथा रामभक्ति या कृष्ण भवित पर आधारित न होकर पौराणिक कथा पर आधारित है। पुण्यश्लोक नल की कथा इस दूतकाव्य में वर्णित है। काव्य के रचयिता श्रीत्रिविक्रम भट्टजी हैं। काल-निर्धारण में कुछ मत-चैभिन्न्य अवश्य है, पर प्राप्त सूत्रों के आधार पर ई० सन् ९१५ में इस काव्य-ग्रन्थ की रचना स्वीकृत हुई है। ____ काव्य में नल एवं दमयन्ती की प्रेमकथा वर्णित है। काव्य में दूतसम्प्रेषण की स्पष्ट झलक एक ही स्थान पर नहीं, प्रत्युत अनेक स्थलों पर मिलती है । हंस एक पक्षी विशेष तथा काव्य का नायक स्वयं नल दोनों दौत्य-कर्म सम्पादित करते हैं। हंस, जहाँ नल एवं दमयन्ती दोनों का दूत बनकर, उन दोनों के सन्देश को एक दूसरे के पास पहुँचाता है, वहीं नल देवताओं का दूत बनकर उनके सन्देश को अपनी प्रिया तथा काव्य की नायिका दमयन्ती के पास तक पहुँचाता है । काव्य बहुत ही विचित्र है।
काव्य में सात उच्छवास हैं, जिनमें सब मिला कर ३७७ श्लोक हैं। काव्य अपूर्ण हो है । इस विषय में रचनाकार के प्रति एक कथा मिलती है कि एक बार इन्हें राजपण्डित पिताजी की अनुपस्थिति में एक अन्य पण्डित से शास्त्रार्थ में विजय हेतु वाग्देवी से वर मिला कि पिताजी के न आने तक मैं तुम्हारी वाणी में रहँगी। वर पाकर इन्होंने उस पण्डित को परास्त किया, फिर तुरन्त इस नल-चम्पू काव्य की रचना प्रारम्भ कर दी। कहते हैं कि जब अन्तिम सप्तम उच्छवास की रचना कर रहे थे तभी पिताजी के आ जाने से वाग्देवी उनकी वाणी से निकल गयीं। इस प्रकार यह काव्य अधूरा हो रह गया । अपूर्ण होने पर भी प्राप्त अंश ही बहुत अद्भुत है।
पद्यदतम् : राम-कथा पर आधारित यह दूतकाव्य श्री सिद्धनाथ विद्यावागीश द्वारा प्रणीत है। काव्य में एक पद्य अर्थात् कमल को दूत १. जैन सिद्धान्त भास्कर, (१५३६ ई०) भाग २, किरण १, पृ० ३६ । २. प्रकाशित । ३. विक्रम संवत् १२२५ में कलकत्ता से प्रकाशित तथा इण्डिया आफिस पुस्त
कालय के कैटालाग में पृ० १८२६ पर द्रष्टव्य ।
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