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भूमिका : ४३ दूतकाव्य है । इस काव्य के काव्यकार जम्बूकवि श्री विनयप्रभुजी हैं । इस काव्य में भी चन्द्र के माध्यम से ही दौत्य कर्म सम्पादित करवाया गया है । काव्य अति लघु रूप में है । यह दूतकाव्य मात्र २३ श्लोकों का ही है । भाषा बहुत ही परिमार्जित है । अन्त्ययमक एवं मालिनी छन्द में यह काव्य रचित है । अत्यन्त अल्पाकार होने पर भी काव्य दर्शनीय है ।
झंझावात : राष्ट्रीय भावना को लेकर इस सन्देशकाव्य की रचना हुई है । रचनाकार श्री श्रुतिदेवशास्त्री जी हैं । इस काव्य की रचना सन् १९४२ में होने वाले आन्दोलन के समय हुई थी । काव्य में झंझावात को रोककर उसे दूत बनाकर उसके द्वारा अपना सन्देश - सम्प्रेषित किया गया है । नेता सुभाषचन्द्र बोस इस काव्य के नायक हैं तथा उन्होंने द्वितीय महायुद्ध के दौरान बर्लिन में रहकर भारतीय स्वतन्त्रता को प्राप्त करने में अपना संघर्ष जारी रखा था उसी समय नेताजी ने एक दिन रात्रि में उत्तर की ओर से आते हुए एक झंझावात को रोककर उसी के द्वारा भारत की जनता के नाम अपना सन्देश सम्प्रेषित किया है ।
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यह काव्य पूर्णतया राष्ट्रीय भावना पर आधारित है तथा इस दूतकाव्य की परम्परा में सबसे विचित्र है ।
तुलसीबूतम्' : यह दूतकाव्य कृष्ण कथा पर आधारित है । जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है कि काव्य में दौत्य कर्म तुलसी वृक्ष द्वारा सम्पादित करवाया गया है । त्रिलोचन कवि इस काव्य के रचनाकार हैं । कुल काव्य ५५ श्लोकों का है । काव्य का रचनाकाल शक संवत् १७३० है । काव्य की कथा इस प्रकार है कि कोई एक गोपी श्रीकृष्ण के विरह से संतप्त होकर वृन्दावन में प्रवेश करती है । वहाँ एक तुलसी के वृक्ष को देखकर उसके मन में, उस तुलसी वृक्ष को हो दूत बनाकर उसके द्वारा श्रीकृष्ण के पास अपना सन्देश भेजने की भावना उठती है । फलतः वह तुलसीवृक्ष को ही दूत बनाकर उसे मथुरा श्रीकृष्ण के पास भेजती है । कवि ने अपनी भावनाओं को काव्य में मूर्तरूप दे दिया है । इसीलिए काव्य अतिशय चमत्कारपूर्ण बन गया है ।
तुलसीदूतम् : कवि श्री वैद्यनाथ द्विज द्वारा प्रणीत प्रस्तुत दूतकाव्य,
१. संस्कृत साहित्य परिषद्, कलकत्ता के पुस्तकालय में पाण्डुलिपि उपलब्ध । प्राच्य - वाणी मन्दिर, कलकत्ता के ग्रन्थ सूचीपत्र के ग्रन्थ संख्या १३७ में द्रष्टव्य; अप्रकाशित ।
२. प्राच्य वाणी मन्दिर, कलकत्ता के ग्रन्थ संख्या १३७ के रूप में द्रष्टव्य; अप्रकाशित |
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