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________________ ४२: जेनमेघदूतम् श्री पेरूसूरि हैं। इस काव्य का उल्लेख, काव्यकार के ही एक वसुमंगलनाटक की प्रस्तावना में किया गया प्राप्त होता है। जिसके आधार पर यह अनुमान लगता है कि चकोर पक्षी ही प्रेमी-प्रेमिका के बीच सन्देश हारक का काम करता है। चकोरसन्देश : श्री वेंकट कवि द्वारा रचित यह दूतकाव्य इस काव्यपरम्परा में, अपने नाम का यह दूसरा दूतकाव्य है। काव्य अप्रकाशित ही है। इसमें भी चकोर पक्षी द्वारा दौत्य-कर्म सम्पादित करवाया गया है। - चकोरसन्देश : श्री वासुदेव कवि द्वारा रचित यह तीसरा चकोर सन्देशकाव्य भी अनुपलब्ध है। इसके लेखक ने 'शिवोदय' आदि अन्य काव्य भी रचे हैं। चन्द्रदूतम् : यह दूतकाव्य राम-भक्ति पर आधारित है। काव्य में चन्द्रमा द्वारा दौत्य-कर्म सम्पादित करवाया गया है। काव्य की रचना श्रीकृष्ण तर्कालंकार ने की है। अपनी कवित्व-प्रतिभा प्रदर्शित करने के उद्देश्य से उन्होंने काव्य के प्रारम्भ में ही अनुप्रास आदि अलंकारों का अपूर्व प्रयोग करने की चेष्टा की है । यथा रामो रामाभिरामो रभितकरभवैरात्मरामाविरामस्तप्तो मोमुह्यमानो झटिति वियति तं वीक्ष्य चन्द्रं तदीयैः। सूरो यं वा स्मरो वा स्मररिपुरपि वा स्वर्मणिर्वा विभाति प्राणेशीवकत्रचन्द्रः किमु गगनचरस्तर्कयामास चतत॥ हनुमान जी द्वारा, सीता के पास से भगवान् राम के लिए प्रेषित सन्देश श्रीराम को मिलने पर, रामचन्द्र देवी सीता के वियोग में उनका स्मरण कर व्याकुल होने लगे। उस समय वे माल्य-पर्वत पर विराजमान थे । अपने मन की वेदना को सन्देश रूप में अशोकवाटिका में स्थित सीताजी के पास पहुँचाने हेतु उन्होंने आकाश में प्रकाशित चन्द्र को अपना दूत बनाया, जिसके द्वारा उन्होंने अपना विरह-सन्देश अपनी प्रिया सीता के पास तक पहुँचाया। यही कथा काव्य में वर्णित है। काव्य अति सुन्दर है । चन्द्रदूतम् : दूतकाव्य की परम्परा में यह अपने नाम का दूसरा १. ओरियण्टल मैनस्क्रिप्ट्स लाइब्रेरी, मैसूर के हस्तलिखित ग्रन्थों के सूचीपत्र में संख्या २४६ पर द्रष्टव्य । २. संस्कृत के सन्देशकाव्य : रामकुमार आचार्य, परिशिष्ट १ । ३. श्री हरिप्रसाद शास्त्री द्वारा संकलित संस्कृत पाण्डुलिपि सूची, द्वितीय भाग के ग्रन्थ संख्या ६१ के रूप में हस्तलिखित प्रति उपलभ्य; अप्रकाशित । ४. डा० जे० बी० चौधरी द्वारा सन् १९४१ में कलकत्ता से प्रकाशित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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