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भूमिका : ४१ भाग की कथा को कल्पित किया गया है। रचनाकार दाक्षिणात्य होने के कारण प्रकाशित इसके दोनों संस्करण तेलुगु लिपि में मुद्रित हैं।
चकोरदूतम् : बिहार प्रान्त के पं० वागीश झा ने इस दूतकाव्य की रचना की है। अभी हाल ही में लिखे गये दूतकाव्यों में यह उच्चकोटिक है। इसका उल्लेख प्रो० वनेश्वर पाठक ने अपनी कृति 'प्लवङ्गतम्' की भूमिका के पृष्ठ २७ पर किया है।
चक्रवाकदूतम्' : इस काव्य के कर्ता म्युतनकुङ हैं। इस काव्य का उल्लेख ओझा-अभिनन्दन ग्रन्थ में “जावा के हिन्दू साहित्य के कुछ मुख्य अन्धों का परिचय" नामक लेख में हुआ है। इस काव्य का अपरनाम "व्रतसश्चय" है। यह खण्डकाव्य सन् १९५० ई० का है। इसमें विविध जाति के ११२ श्लोक हैं । कवि ने मुख्य रूप से संस्कृत छन्दों का स्पष्टीकरण किया है। काव्य के प्रत्येक श्लोक में उसकी संज्ञा, लक्षण एवं उदाहरण आ जाते हैं। साथ ही कथा प्रसंग भी चलता रहता है परन्तु यह कथा गौण ही है । एक राजकुमारी अपने प्रेमी के विरह में अति व्याकुल है। एक चकवे को देख, वह उससे अपनो व्यथा सुनाती है और उसे दूत बनाकर वह उसे अपने प्रियतम के पास भेजती है। चक्रवाक जाकर उसके राजकुमार को खोज लाता है और इस तरह प्रेमी-प्रेमिका का मिलाप हो जाता है। काव्य में नायिका नायक के पास अपना सन्देश भेजती है, यही इस दूतकाव्य की किंचिभिन्नता है कालिदासीय मेघदूत से।
चातकसन्देश : चातक पक्षी को अपना दूत बनाकर किसी अज्ञातनाम कवि ने इस दूतकाव्य की १४१ श्लोकों में रचना की है। काव्य में एक नायिका के सन्देश को दूत चातक ने त्रिवेन्द्रम् के नरेश रामवर्मा के पास पहुंचाया है। काव्य अपने पूर्ण रूप में न तो प्राप्त ही है और न तो प्रकाशित ही है।
चकोरसन्देश : चकोर नामक एक पक्षी विशेष के माध्यम से इस दूतकाव्य में सन्देश-सम्प्रेषण करवाया गया है। इस काव्य के काव्यकार १. जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग ३, किरण १ (सन् १९३६), पृ० ३६; अप्रकाशित। २. जर्नल ऑफ द रॉयल एशियाटिक सोसायटी के सन् १८८१, के सूचीपत्र के
१० ४५१ पर द्रष्टव्या; अप्रकाशित । ३. ओरियण्टल मैनस्क्रिन्टस लाइब्रेरी मद्रास के हस्तलिखित ग्रन्थों के सूचीपत्र
के भाग २७ संख्या ८४९७ तथा तंजौर पैलेस लाइब्रेरी के हस्तलिखित ग्रन्थों के सूचीपत्र के भाग ७, संख्या २८६६ पर द्रष्टव्य; अप्रकाशित ।
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