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३६ : जैनमेघदूतम्
काकोदरो यावृश एव जन्तोः काकध्वजो वा जलसम्भवस्य । काकोलरूपःकिमु नाशकोऽत्र काकोऽयमागान्मम सन्निधाने ॥ काकाञ्चाजीर्णजीर्णज्वरकृमिकफहा काकजम्बूश्च दाहमिधातीसारनाशिन्यथ मधुरगुणा पाककाले यथा स्यात् । काकेन्दुर्वान्तिपित्तप्रशमक इति वा काकमाचीऽत्रिदोष
शान्त्यै शक्ता तथायं किमु मम विरहस्यान्तकर्ताऽन्तिकोऽभूत् ।। इस दूतकाव्य में अनेक छन्दों का प्रयोग किया गया है।
कोकदूतम्' : इस काव्य के कर्ता के सम्बन्ध में किंचिदपि जानकारी नहीं है। मात्र 'सहृदयम्' नामक मासिक पत्रिका के एक अंक में इस काव्य का उल्लेख मिलता है।
कांकबूतम् : इस काव्य के रचनाकार के विषय में कुछ भी नहीं ज्ञात है। इसमें कारागार में पड़ा एक ब्राह्मण काक के द्वारा अपनी प्रेयसी कादम्बरी के पास अपना सन्देश भेजता है। नैतिकता की शिक्षा देने के विचार से समाज पर रचा गया यह एक व्यंग्यपरक दूतकाव्य है ।
कोरदतम् :श्रीकृष्ण की कथा पर आधारित यह दूतकाव्य श्री रामगोपाल जी द्वारा रचा गया है। सन्देश-सम्प्रेषण का माध्यम एक कीर अर्थात् शुक है। इसलिए परम्परानुसार दूत के ही आधार पर काव्य का नामकरण किया गया है। ___ श्रीकृष्ण के वृन्दावन से मथुरा चले जाने पर गोपियाँ श्रीकृष्ण के वियोग में बहुत व्याकुल होती हैं। उनकी यह विरह-व्यथा इतनी तीव्र हो जाती है कि वे अपनी उस विरह-व्यथा का सन्देश एक शुक के माध्यम से श्रीकृष्ण तक पहँचाती हैं। काव्य में कुछ १०४ श्लोक हैं। कवि ने अपनी विद्वता एवं काव्यचातुरी का पूर्णपरिचय दिया है। काव्य अद्यावधि अप्रकाशित ही है।
कीरदूतम् : वेदान्तदेशिक के पुत्र वरदाचार्य द्वारा रचा गया यह कीरदूत काव्य प्राप्त तो नहीं है, परन्तु मैसूर की गुरु परम्परा में इसका उल्लेख मिलता है। १. सहृदयम्, संस्कृत मासिक पत्रिका, मद्रास, भाग, २३, पृ० १७३ । २. संस्कृत साहित्य का इतिहास : कृष्णमाचारियर, पृ० ३६५ । ३. श्रीहरप्रसाद शास्त्री द्वारा संकलित संस्कृत हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची के __ भाग १, पृ० ३९, संख्या ६७ पर द्रष्टव्य । ४. संस्कृत के सन्देशकाव्य : रामकुमार आचार्य, परिशिष्ट २।
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