SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका : ३७ कोकसन्देश : विप्रलम्भ शृङ्गार से पूर्ण एक स्वतन्त्र कथा पर आधारित इस दूतकाव्य की रचना कवि श्री विष्णुत्रात ने की है। कालिदासीय मेघदूत के ही समान यह काव्य भी क्रमशः १२० एवं १८६ श्लोकों द्वारा दो भागों में विभक्त है। दूत का माध्यम एक कोक अर्थात् चक्रवाक पक्षी विशेष को बनाया गया है। विद्यापुर का राजकुमार जो कि अपनी प्रिया के सहित सुखपूर्वक रहता था, एक बार एक यान्त्रिक से एक ऐसे यन्त्र को प्राप्त कर, जिससे कि उस यन्त्र के सिर में स्पर्श से व्यक्ति देश से बहुत दूर पहुँच जाता था, कौतूहलवश उसका प्रयोग कर बैठा। जिसके कारण वह अपने राज्य एवं प्रिया से दूर अन्य दूसरे देश में पहुँच गया। प्रिया के वियोग में व्याकुल हो उसने एक कोक को अपना दूत बनाकर एवं उसे अपना सन्देश देकर अपनी प्रियतमा के पास भेजा। ___ काव्य की यह कथा काल्पनिक ही है। चक्रवाक को दूत बनाने में कवि ने अपनी सूक्ष्मदर्शिता का स्पष्ट परिचय दिया है, क्योंकि चक्रवाक हर रात स्वयं अपनी प्रिया के विरह-दुःख को अनुभव करता है। इसलिए वह अन्य विरहियों के बिरह को भी भली-भाँति समझ सकता है एवं उसका सन्देश ठीक प्रकार से पहुँचा सकता है। काव्य कालिदासीय मेघदूत के अनुकरण पर ही रचा गया है। विषय, व्यवस्था, छन्द तथा शैली आदि सभी में मेघदूत का ही अनुकरण है । इस हेतु काव्यकार ने काव्य के प्रारम्भ में सर्दूिरीकृतमपि सदैवविल दोषबुद्धया। गंगासंगात कृतकसरितां वारि पुण्यं न किं स्यात् ॥२४॥ यह पंक्तियां लिखी हैं कि विद्वानों को भले ही इस काव्य में कहीं न कहीं दोष दिखलाई पड़े पर जिस तरह गंगा नदी से निकली नहर का जल भी पवित्र माना जाता है, उसी तरह मेघदूत के अनुकरण पर ही होने के कारण यह काव्य भी उतना ही सरस एवं रमणीय है। __ कोकिलदूतम्' : कृष्ण-भक्ति को लेकर प्रस्तुत यह दूतकाव्य कवि श्री हरिदास जी द्वारा रचा गया है। काव्य का रचनाकाल शक सं० १७७७ है । १. त्रिवेन्द्रम संस्कृत सीरीज से ग्रन्थांक १२५ के रूप में सन् १९३७ में प्रकाशित । २. कालिदाससेन की मणिमाला व्याख्यासहित सुधामय प्रामाणिक द्वारा कल कत्ता से बंगीय सं० १३११ में प्रकाशित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy