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. भूमिका ::३५ १३८ श्लोक हैं । कथावस्तु इस प्रकार है-विरही श्रीकृष्ण विरह से अति पीड़ित होने पर अपने विरह-ताप को तथा गोपिकाओं के विरह-ताप को दूर करने हेतु श्री उद्धवजी को अपना दूत बनाकर मथुरा से वृन्दावन भेजते हैं।
यह दूतकाव्य भी कृष्णकथा पर ही आश्रित है एवं इस काव्य की कथावस्तु भी श्रीमद्भागवत से ही ली गयी है। दूतकाव्य का अधिकांश भाग मन्दाक्रान्ता छन्द में निबद्ध है। कवि की वर्णन-शैली अति प्रशंसनीय है। अनुरक्ता स्त्री के मानस-भाव के चित्रण में कवि ने अपनी निपुणता एवं विद्वता से काम लिया है।
संक्षेप में कह सकते हैं कि उद्धवसन्देश कवि श्रीरूपगोस्वामी का एक उत्तम प्रशंसनीय काव्य-ग्रन्थ है। शृङ्गारिक, कलात्मक एवं अन्य दृष्टियों से भी यह दूतकाव्य पूर्ण ही है।
कपिदूतम्' : इस काव्य के कर्ता के विषय में कुछ भी जानकारी प्राप्त नहीं है । ढाका विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में इस काव्य की एक एक खण्डित हस्तलिखित प्रति उपलब्ध है। ग्रन्थ का अध्ययन करने पर भी इसमें कहीं भी उसके रचनाकार की सूचना नहीं प्राप्त होती है। .. ___ काकदूतम् : इस दूतकाव्य के सृष्टिकर्ता कवि श्री गौरगोपाल शिरोमणि जी हैं । यह काव्य भी कृष्ण-भक्ति की ही कथा का वर्णन करता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इस काव्य में दौत्य-कर्म को एक काक अर्थात् कौए द्वारा सम्पादित करवाया गया है । काव्य-कथा कुछ इस प्रकार है कि राधा कृष्ण के वियोग में बहुत व्याकुल हो उठती हैं। अतः काक को अपना दूत निर्धारित कर उसके द्वारा अपना विरह-सन्देश श्रीकृष्ण के पास तक पहुँचाती हैं ।
काव्य का रचनाकाल शक सं० १८११ है। काव्य बहुत ही सुन्दर है। काव्य-सौष्ठव को दृष्टि से काव्य पूर्णता को प्राप्त है। कवि ने अपनी निपुणता का पूरा-पूरा समायोजन करके दिखा दिया है। तभो न काकदर्शनोपरान्त श्री राधा के मन में दो तरह की भावनाएँ उत्पन्न होने लगती हैं कि या तो यह काक मेरा उपकार ही करेगा या फिर मेरा अपकार अर्थात् नाश ही करेगा । काक में यह दोनों शुभ और अशुभसूचक भाव सन्निविष्ट हैं । यथा१. ढाका विश्वविद्यालय पुस्तकालय, हस्तलिखित ग्रन्थ-संख्या ९७५ बी। २. बंगीयदूतकाव्येतिहास : डॉ० जे० बी० चौधरी, पृ० ९७। ।
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