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जैनेतर दूतकाव्य दूतकाव्य संस्कृत-साहित्य को एक विशिष्ट परम्परा है। इस परम्परा की सर्वसशक्त कृति महाकवि कालिदासकृत मेघदूत है। मेघदूत की लोकप्रियता भारतीय साहित्य में प्राचीनकाल से ही रही है। अनेक कवियों ने इस रचना से प्रेरित होकर या इसी को आधार बनाकर अपने-अपने दूतकाव्यों की रचना की है । इस प्रकार इस परम्परा में निरन्तर नवीम. नवीन दूतकाव्य जुड़ते गये हैं।
अद्यावधि इस परम्परा का स्वरूप अत्यन्त विस्तृत हो चुका है। अब तक शताधिक दूतकाव्य जैनेतर कवियों द्वारा रचे जा चके हैं। यहाँ इम समस्त दूतकाव्यों का संक्षिप्त दिग्दर्शन, उनके नामों के वर्णक्रमानुसार, प्रस्तुत किया जा रहा है। इनमें से किंचित् दूतकाव्यों का तो ग्रन्थों एवं सूची-पत्रों में मात्र उल्लेख ही मिलता है और शेष प्रायः प्रकाशित हो चुके हैं
अनिलदूतम्' : यह काव्य कृष्ण-कथा पर आधारित है। इस दूतकाव्य में अनिल अर्थात् वायु द्वारा दौत्य-कर्म सम्पादित करवाया गया है। काव्य के रचयिता श्री रामदयाल तकरत्न हैं । दूतकाव्य का प्रथम श्लोक है
श्रीमत्कृष्णे मधुपुरगते निर्मला क पि बाला गोपी नीलोत्पलनयनजां वारिधारां वहन्ती। म्लानिप्राप्त्या शशधरनिभं धारयन्ती तदास्यं
गाढप्रीतिच्युतिकृतजरा निर्भरं कातराऽभूत् ॥१॥ काव्य में कथा इस प्रकार है कि कृष्ण के मथुरा चले जाने पर निर्मला नामक एक गोपबाला विरह से बहुत व्याकुल हो उठती है। अपनी इस विरह-व्यथा को श्रीकृष्ण के पास तक पहुँचाने के हेतु वह प्रवाहित होती वायु अर्थात् अनिल को ही अपना दुत बनाकर उसके द्वारा अपना विरहसन्देश श्रीकृष्ण के पास भेजती है। काव्य पूर्ण रूप में उपलब्ध भी नहीं है, मात्र उसके कुछ अंश ही प्राप्त हैं। ___अब्ददूतम् : रामकथा पर आधारित इस दूतकाव्य के रचनाकार श्रीकृष्णचन्द्रजी हैं। काव्य प्रकाशित नहीं हो पाया है। मूलप्रति तालपत्र १. प्राच्य-वाणी मन्दिर, कलकत्ता की हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची में द्रष्टव्य । २. अप्रकाशित ।
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