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३० : जैनमेघदूतम् मेघदूत की समस्या-पूर्ति-परक काव्यों में यह काव्य अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है। - वचनदूतम्' : यह दूतकाव्य, इस परम्परा का सबसे नवीन दूतकाव्य है। पं० मुलचन्द्र शास्त्री ने इसे दो भागों में रचा है। यह दूतकाव्य जैन धर्म के बाईसवें तीर्थंकर भगवान् श्री नेमिनाथ के जीवन से सम्बन्धित है। काव्य के पूर्वाद्ध में कवि ने राजुल के आत्मनिवेदन को प्रस्तुत किया है तथा उत्तराद्ध में उस वियोगिनी की व्यथा को परिजनों के द्वारा निवेदित करवाया है।
नेमि और राजुल का प्रसंग, न केवल वैराग्य का एक अप्रतिम विचारोत्तेजक मर्मस्पर्शी प्रसंग रहा है अपितु उसने साहित्य, विशेषतः काव्य को भी निकट से प्रभावित किया है। कवि ने राजीमती के विरहवियोग को बड़ी चुम्बकीय शैली में प्रस्तुत किया है। कालिदासीय मेघदूत-शिल्प में उसकी अन्तिम श्लोक-पंक्ति को नींव बनाकर खड़ा, यह काव्य निस्सन्देह नेमि और राजुल के मार्मिक प्रसंग को सफलतापूर्वक प्रस्तुत करता है । वैराग्य की पृष्ठभूमि के साथ-साथ अहिंसा, करुणा और साधना के प्रतिपादन के विषय में यह काव्य अनूठा है ।
शीलदूतम्२ : मेघदूत के पद्यों के अन्तिम चरण को लेकर समस्यापूर्ति के रूप में यह काव्य लिखा गया है। इस काव्य के रचनाकार मुनि श्री चारित्रसुन्दरगणि जी हैं। शील जैसे भाव को दूत बनाना कवि की मौलिक प्रतिभा का परिचायक है। यह काव्य वि० संवत् १४८७ में रचा गया है । कवि ने इस दूतकाव्य के अतिरिक्त श्रीकुमारपाल महाकाव्य, श्रीमहीपालचरित और आचारोपदेश आदि अनेक ग्रन्थ भी रचे हैं। __ स्थूलभद्र अपने पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर विरक्त हो जाता है और एक पर्वत पर आश्रम बनाकर रहने लगता है। एक बार भद्रबाहु स्वामी से उसका साक्षात्कार होता है, वह उनसे दीक्षा ग्रहण करता है। गुरु के आदेश से वह अपनी नगरी में आता है। वहाँ उसकी रानी कोशा उसे पुनः गृहस्थी में प्रविष्ट होने के लिए निवेदन करती है। रानी के वचनों को सुनकर स्थूलभद्र ने कहा-“भद्रे ! अब मुझे विषयों से राग नहीं है, १. प्रकाशित, श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, श्री महावीर जी साहित्य-शोध... विभाग, महावीर भवन, सवाई मानसिंह हाईवे, जयपुर । २. यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी से वीर संवत् २४३९ में प्रकाशित ।
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