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________________ तृतीय सर्ग वादित्रसमूहशब्दः अभितः समन्ततः उच्चैः अतिशयेन रोबोरन्ध्र भूमिव्योम्नोरन्तराले पूरिते सति, उत्प्रेक्ष्यते - सुरनरवराहूतिहेतोरिव सुराणां नराणां च वरा श्रेष्ठा या हूतिः आकारणं तस्य हेतोरिव कारणादिव पूरिते । स्वामिना इभः प्रथमं गत्या अधःकृतः पश्चात् अध्यारोहणेन अधः कृतः, अतः पौनरुक्त्यं युक्तमेव उक्तम् ।। ३१ ।। ८५ हे मेघ ! वाद्ययन्त्रों की ध्वनियों के आकाश एवं पृथिवी के समस्त कोणों में व्याप्त होने पर ऐसा लग रहा था मानो देवताओं और मनुष्यों का आह्वान हो रहा हो। इस प्रकार वाद्ययन्त्रों के बजने पर अति तेजस्वी विश्वभर्त्ता श्री नेमि ने उस औपवाह्य (राजगज) पर आरोहण किया, जिसे एक बार पहले भी उन्होंने नीचे किया था अर्थात् आरोहण किया था । अतः उसी कार्य को पुनः करने से पुनरुक्तता हो गई ।। ३१ ।। सर्वैः प्राप्तेऽप्यधिकमुचिते साधु संभावितो यत् पूर्वो भागो भुवनविभुना स्कन्धमध्यास्य नेयम् । अद्याप्येनं ननु गजपतेः प्राभवं विप्रकारं स्मारं स्मारं भजति कुशतां साऽपरा खिद्यमाना ||३२|| सर्वे: प्राप्ते • हे जलघर ! यत् भुवनविभुना त्रिभुवनस्वामिना श्रीनेमिना गजपतेः गजेन्द्रस्य स्कन्धमध्यास्य स्कन्धोपरि आरुह्य पूर्वोभागो पूर्वप्रदेश: साधु मनोज्ञं यथा स्यात् तथा सम्भावितः अतीव सुन्दरोऽयम् इति वर्णितः । इयं वक्ष्यमाणा अपरा न सम्भाविता । क्वसति - सर्वेः अङ्गः अधिकं यथा स्यात् तथा उचिते प्राप्ते सति । हे मेघ ! नन्विति सम्भाव्यतो सा अपरा पश्चिमप्रदेश अद्यापि अतनं दिनं यावदपि एतं प्राभवं प्रभुसम्बन्धिनं विप्रकारं पराभवं स्मारं स्मारं स्मृत्वा स्मृत्वा खिद्यमाना सती कृशतां भजति ॥ ३२ ॥ हे मेघ ! त्रिभुवनपति श्री नेमि ने उस गज के पूर्व भाग ( स्कन्ध) पर ही आरोहण किया इसीलिए उसका (हाथी का ) अग्रभाग ही वर्णनीय हुआ और पिछले भाग पर आरोहण न करने से पिछला भाग खिन्न हुआ । उस खिन्नता के कारण वह आज भी कृश अर्थात् नीचे है । तात्पर्य है कि आज भी हाथियों का अग्रभाग ऊँचा होता है तथा पृष्ठ भाग दबा होता है, इसका कारण है श्री नेमि का अग्र भाग पर ही चढ़ना । ऐसी कवि की कल्पना है ॥ ३२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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