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________________ द्वितीय सर्ग । नित्योन्निद्र० हे जलद ! काचित् वामा दशशतदलं सहस्रपत्रकमलं लीलया उल्लूय छेदयित्वा तस्य श्रीनेमेः एककर्णावतंसीचक्रे एककर्णाभरणं चकार इत्यर्थः । काचित् कुर्वती--इति वदन्ती, इति किम्-हे देव ! अदः कर्णावतंसीकृतकमलं ते तव ववनकमलं मुखपद्म सेवते । किंरूपं वदनकमलं-नित्योन्निद्रं सदाबिकस्वरं तथा पुरुपरिमलं भूरिसौरभं तथा राजतेजोविराजि राजमहोविराजि तथा स्पष्टश्रीकं स्पष्टाश्रीका शोभा यस्य तं तत् । किरूपं अदः-स्थानभ्रष्टम् अतएव जितं ।। ४६ ।। किसी रमणोने एक सहस्रदलकमलपुष्प को लीला पूर्वक तोड़कर यह कहते हुए कि हे देव ! यह कमल परास्त होकर अन्य के मुखकमल की सेवा कर रहा है'' उसे भगवान् श्रीनेमि के कान में पहना दिया। कमल का भगवान् के मुखकमल से पराजित होने का कारण यह है कि श्रीनेमि का मुख कमल नित्य खिला रहता है पर यह कमल केवल दिन में ही खिलता है, श्रीनेमि के मुखकमल में प्रभूत सुगन्ध है पर कमल में अल्प मात्रामें ही सुगन्ध है श्रीनेमि का मुख कमल राजतेज से युक्त है पर कमल में चन्द्रमा का तेज नहीं है। श्रीनेमि के मुखमण्डल में कान्ति है पर कमल में वैसी कान्ति नहीं है । कमल उखाड़े जाने के कारण स्थानभ्रष्ट भी है। इन्हीं कारणों से पराजित होकर यह कमल आपके मुख कमल की सेवा में प्रवृत्त हुआ है। स्पर्धध्वे रे ! नयननलिने निर्मले देवरस्य स्मित्वेत्येवं शिततरतिरःकालकाण्डान् किरन्ती । कन्दोत्खातान् धवलकमलान् कामपाशप्रकाशान् नाशाशास्यानुरसि सरसाऽहारयत् स्वामिनोऽन्या ॥ ४७ ॥ स्पर्धध्वे. हे जलद ! अन्या काचित् वामा धवलकमलान् श्वेतपद्मानि स्वामिनः श्रीनेमेः उरसि हृदये अहारयत् हारं अकरोत् । किंविशिष्टान् धवलकमलान्-कन्दोत्खातान् कन्दोत्छिदितान् तथा कामपाशप्रकाशान् कामपाशः कामबन्धनं प्रकाशयन्ती कामपाशप्रकाशाः तान् तथा नाशाशास्यान् नाशिकया आशास्यान् आघ्राणयोग्यान् । किंरूपा सा-सरसा सशृङ्गाररसाः । किं कुर्वती-इति एवं स्मित्वा हसित्वा, शितितरतिरःकाक्षकाण्डान् अतितीक्ष्ण तिर्यग् कटाक्षबाणान् किरन्ती विक्षिपन्ती । इतीति किं ? रे कमलाः। यूयं देवरस्य श्रीनेमेः निर्मले नयननलिने नेत्रकमले स्पर्धध्वे ताभ्यां सह स्पर्धा कुरुष्व इत्यर्थः ॥ ४७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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