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________________ ५७ द्वितीय सर्ग . जगाम । किरूपः तूरसंहूतपौरः--तूरैर्वादिः संहूताः प्रेक्षणार्थे आकारिताः पौरनागरिका येन सः ।।३६॥ गर्मी की अधिकता से महल के मध्य की भूमि सुख नहीं दे रही थी और महल का उपरी भाग अत्यधिक लू चलने से कष्ट दे रहा था, अतः श्रीकृष्ण इन दोनों (अर्थात् महल को) को छोड़कर अपनी शंख ध्वनि से नगर वासियों को बुलाकर श्रीनेमि के साथ जल में विहार करने की इच्छा से लीला उपवन में गये ॥३६॥ ज्येष्ठं कृत्वा पुर इव भुजन्नम्रसालै रसालैः सालैर्णीष्मः प्रमदवनभूमध्यदेशप्रवेशे पुज्जीभूता भुवि विगलनाभारतार्धत्रिलोकीलीलापत्योः स्वफलपटलो प्राभृतेऽचीकरच्च ॥३७॥ ज्येष्ठं कृत्वा • च पुनः उत्प्रेक्ष्यते-ग्रीष्मः उष्णकाल: भारतात्रिलोकोलोलापत्योः कृष्णनेम्योः रसालैः सहकारैः साल: वृक्षैः स्वफलपटली: निजसमूहान् प्राभूते ठोकने अचीकरदिवकारयतिस्मेव । किंकृत्वा-ज्येष्ठं ज्येष्ठमासं पुरः अग्रे कृत्वा । क्वसति-प्रमदवनभूमध्यदेशे प्रविशति सति क्रीडावनभूमध्यदेशप्रवेशे सति । किंरूपः रसालै;-भुजन्नम्रसालः भुजन्त्यो भुजइवाचरन्त्यो नम्रा नमनशीलाः शालाः शाखा येषांते तैः । किंरूपाः स्वफलपटली:-विगलनात् भुवि पृथिव्यां पुजीभूता राशीभूताः अन्योऽपि किल ज्येष्ठं वृद्धं जनं अग्रे स्वफलानि स्वामिनो ठोकने कारयति ।।३७॥ गर्मी के दिनों में आम्रवृक्ष पके हुए फलों से लदकर झक जाते हैं तथा पके हुए आम जमीन पर भी फैल जाते हैं इसी प्राकृतिक दृश्य को कवि ने उत्प्रेक्षित करते हुए कहा है कि ग्रीष्म उन दोनों का स्वागत कर रहा है। ___ श्रीकृष्ण और नेमिनाथ के उस प्रमदवन में प्रवेश करने पर ग्रीष्म ऋतु ने ज्येष्ठमास को आगे कर (जैसे किसी विशिष्ट व्यक्ति के आने पर घर का मुखिया स्वागत करता है। उसी प्रकार गर्मी का मुखिया ज्येष्ठ मास) रसदार फलों से युक्त आम्रवृक्ष को नम्रीभूत शाखा रूपी भजा से एवं पृथिवी पर गिरे हुए आम्र फलों से उन दोनों का स्वागत किया ॥३७॥ दर्श दर्श फलितफलदान् पाकिम पीतलत्वं बिभ्रद्बभ्रुः सरसमकृशं वानशालाटवान्यत् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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