________________
४८
जैनमेघदूतम् ___ काचिद्वामा ० हे जलद काचिद्वामा दक्षमुख्यस्य श्रीनेमेः वक्षः उरस्थलं सरसकुसुमैः कृत्वा पिवधे आच्छादयामास । किरूपैः कुसुमैः-चन्दनस्यन्दसिक्तैः श्रीखण्डद्रवलिप्तैः तथा पंक्तिन्यस्तैः पङ क्या परिपाद्या न्यस्तानि पंक्तिन्यस्तानि तैः पुनः । किरूपैः सरसकुसुमैः, उत्प्रेक्ष्यन्ते-तत् वक्षः भेत्तु विदारयितुं अनलभूष्णुभावात् असमर्थभावात् बहिस्थैः बाह्यप्रदेशेस्थितैः । जगदुरो विध्यमानः अखण्डै: सम्पूर्णेः कामोन्मुक्तैः काण्डैरिव बाणैरिव ॥२२॥
हे मेघ ! किसी अन्य कृष्ण पत्नी ने चन्दन रस से भिगोये हुए तथा पक्तियों में रखे हए सरस फलों से श्री नेमिनाथ के वक्षःस्थल को ढक दिया। छातो पर सजाये गये फूल ऐसे लग रहे थे मानो संसार के हृदय को छेदने के लिए काम द्वारा छोड़े गये अखण्डित बाण भगवान् श्री नेमि के हृदय को बींधने में असमर्थ होकर बाहर ही रह गये हैं ।।२२।।
पौष्पापोड: शितिशतदलैः क्लुप्तकर्णावतंसः कण्ठन्यञ्चद्विकिललुलन्मालभारी सलीलम् । तत्केयूरो बकुलवलयः पद्मिनीतन्तुवेदी रेजे मूर्तात्प्रति मम पतिः पुष्पितात्पारिजातात् ॥२३॥
पौष्पापीड: ० हे जलधर मम पतिः श्रीनेमिः मूर्तात् मूत्तिमतः पुष्पितात्यारिजातात् प्रतिरेजे पुष्पितकल्पवृक्षसदृशः शुशुभे । अत्र यतः प्रतिनिधि प्रतिदाने प्रतिना इति सूत्रेण पञ्चमी । किंरूपः मम पतिः-पौष्पापीडः पौष्पः पुष्पसम्बन्धी आपोडः मुकुटो यस्य स तथा सलीलं यथा भवति तथा कण्ठन्यञ्चद्विकिललुलनमालभारी कण्ठात् कण्ठप्रदेशात् न्यञ्चन्तीं नीचर्गच्छन्ती विचकिलस्य लुलंतीयामाला स्रग् तां बिभर्तीति कण्ठन्यञ्चद्विकिललुलन्मालभारी तथा तत्केयूरः तस्यैव बकुलस्यैव केयूरो अंगदो यस्य स तथा बकुलवलयः बकुलवलये कङ्कणे यस्य स तथा पद्मिनीतन्तुवेदी पद्मिन्यातन्तवा पद्मिनीतन्तवः तेषां वेदी मुद्रिका यस्य सः ॥२३॥
हे मेघ ! मेरे पति श्री नेमिनाथ फूलों के मुकुट को पहने हुए, नीलकमल के दलों का कर्णावतंस (कर्णाभूषण) धारण किये हुए, गले में नीचे तक लटकती हुई चमेली को माला को पहनते हुए, चमेली का ही बाजूबन्द पहने हुए मौलसिरी के कङ्कड़ और कमलिनो (कुँई) की अंगूठी को धारण किये हुए ऐसे सुशोभित हुए मानो साक्षात् पुष्पित परिजात ही हो ॥२३॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org