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भूमिका : १५ उपर्युक्त प्रसङ्ग से यह स्पष्टतया प्रतिभासित होता है कि प्राचीन भारत में पक्षियों को भी लोग प्रशिक्षित करते थे और अपने दूत- सम्प्रेषण के कार्य को उनसे भी सम्पादित करवाते थे । विदेशों में भी इन पक्षियों का बहुत सम्मान था, मूल्य था । समुद्र यात्रा के समय समुद्र यात्री अपने पास कुछ ऐसे ही प्रशिक्षित पक्षी भी रखते थे, जो छोड़ देने पर समुद्र-तट का पता लगाकर पुनः जहाज़ पर वापस आ जाते थे । इस प्रकार ये दिशाकाक या पथप्रदर्शक का भी कार्य अति निपुणता से करते थे ।
पउमचरियं - जैन- परम्परा में भी दूत - सम्प्रेषण के कुछ प्रारम्भिक तत्त्व प्राप्त होते हैं । जैन साहित्य में " पउमचरियं" (पद्मचरित) सर्वप्राचीन ग्रन्थ है, जिसके रचनाकार विमलसूरि हैं । इस काव्य में कई स्थलों पर दूत सम्प्रेषण के प्रसङ्ग मिलते हैं । परन्तु हनुमान द्वारा श्रीराम के सन्देश-सम्प्रेषण का प्रसंग सर्वप्रमुख है । जिस तरह वाल्मीकि ने हनुमान को एक दूत के रूप में चित्रित किया है, उसी तरह इस काव्य में भी पवनपुत्र हनुमान को कविराज ने दूतरूप में उपस्थित किया है । सर्वप्रथम जब पवनपुत्र हनुमान श्रीराम से मिलते हैं, तब श्रीराम उनको दूत रूप में लंका के लिए कहते हैं । यह सुन पवनपुत्र इस दौत्यकर्म को अति लघु समझ कर श्रीराम से कहते हैं
सव्वे वि तुज्झ सुपुरिस ! पडिउवयारस्स उज्जया अम्हे । गन्तूण सामि ! लंक, रक्खसणाहं पसाएमो ॥ सामिय देहाssर्णात्त, तुह महिला जेण तत्थ गन्तुणं । आणेमि भुयवलेणं पेच्छसु उक्कण्ठिओ सिग्धं ॥
इस प्रकार हनुमान की इस महागर्जना को सुनकर श्रीराम हर्षोल्लसित हो, सीता के लिए उनको अपना सन्देश देते हैं ।
राम का सन्देश पाकर पुलकितबाहु हनुमान् सीता की खोज में चल पड़े। अपने विचित्र विमान द्वारा वह लंका-नगरी पहुँच कर अशोकवाटिका में आये । वहाँ उनको निर्धूम आग सदृश, बाँयें हाथ पर मुँह रखे हुई, खुले बाल तथा आँसू बहाती हुई सीताजी दीख पड़ीं।
१. पउमचरियं, सुन्दरकाण्ड, ४९।२७-२८ ।
२. वही, ४९।३०-३५ ।
३. वही, ४९।३८ । ४. वही, ५३।१० ।
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