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________________ १४ : जैनमेघदूतम् भेजता है। शुक दास को खोजकर वापस आकर श्रेष्ठी को उसकी सूचना देता है। एक दूसरी कथा में शूली के दण्ड को प्राप्त एक व्यक्ति अन्तरिक्ष में उड़ते हए एक काक को देखकर उसके द्वारा अपनी प्रिय पत्नी के पास अपना सन्देश भिजवाता है । वह काक से कहता है उच्चे सकण डेमान पत्तयान विहंगम । वज्जासि खोत्वं वामू चिरं खोसा करिस्सति ॥ एक स्थल पर एक ऐसे पक्षी की कथा है, जो कोशलराज के पास रहता था और दूत के समान राजा का सन्देश-सम्प्रेषण करता था। उसके दो छोटे बच्चे थे। एक बार कोशलराज के एक पत्र को लेकर पक्षी किसी अन्य राज्य में गया था। कुछ शैतान बच्चों ने उस समय उसके बच्चों को मार डाला। लौटने पर उस पक्ष ने कोशलराज से उसका बदला लिया और हमेशा के लिए वहाँ से चला गया । इसी प्रकार एक और कथा भी मिलती है, जिसमें उत्तर पाञ्चाल की अत्यन्त रूपवती राजकुमारी पञ्चाल-चण्डी का उल्लेख मिलता है। पाञ्चाल तथा विदेह देश के राजाओं में गहरी शत्रता थी। पाञ्चालराज ने अपने शत्रु विदेहराज को नीचा दिखाने हेतु एक नई चाल चली । उसने अपनी पुत्री पञ्चाल-चण्डी की प्रशंसा में कवियों से अनेक रचनाएँ निर्मित करवाईं। संगीतज्ञों द्वारा कुछ पक्षियों के गले में घण्टियाँ बंधवायों तथा उन पक्षियों को कवियों द्वारा रचित रचनाएँ कण्ठस्थ करवायीं । तब इन पक्षियों को विदेहराज के राज्य में भेजा गया। वे पक्षी पाञ्चाल राजकुमारी के रूप-लावण्य की प्रशंसा एवं रचनाओं का गायन करते तथा यह भी कहते कि राजकुमारी विदेहराज पर अनुरक्त है और वह उसी का वरण करना चाहती है। पक्षियों के गीत को विदेहराज ने भी सुना। वह भी राजकुमारी पर अनुरक्त हो गया। इस प्रकार पक्षियों द्वारा पाञ्चालराज ने विदेहराज को फंसाकर उस पर विजय प्राप्त की। १. कलण्डुक जातक, १२७ । २. कामविलाप जातक, २९७ । ३. कुंतनि जातक, ३४३ । ४. महावग्ग जातक, ५४६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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